दीपिका का जन्म झारखंड के एक बेहद ग़रीब परिवार में हुआ... लेकिन सपने ग़रीबी, अमीरी और हालात नहीं देखते... ऐसा ही कुछ दीपिका के साथ हुआ – जिन्होंने बचपन में ही तीरंदाज बनने का सपना देखा. हालांकि घर के हालात ठीक नहीं होने की वजह से उनके पिता इसके खिलाफ थे. लेकिन दीपिका की जिद्द थी कि वो तीरंदाज ही बनेंगी... और दीपिका की जिद्द के आगे उनके पिता को भी हार मनानी पड़ी.... फिर क्या था वो तीरंदाजी सीखने निकल पड़ीं... गरीबी इतनी थी कि घर से निकलते वक्त दीपिका को सिर्फ इस बात संतोष था कि उनके जाने से कम से कम उनके परिवार का बोझ कम हो जायेगा...
दीपिका के पिता शिव नारायण महतो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर थे और माँ गीता महतो एक मेडिकल कॉलेज में ग्रुप डी कर्मचारी हैं. इसलिए जब वो तीरंदाजी के सफर पर निकली तो पिता की आर्थिक हालत इतनी बुरी थी कि खर्च के लिए वो बेटी को सिर्फ 10 रुपए दे पाए... इसके बाद दीपिका ने डिस्ट्रिक्ट लेवल टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और उसे जीतकर भी आ गईं. ये दुनिया की नंबर वन तीरंदाज का पहला टूर्नामेंट था, जहां उन्होंने सिर्फ अपनी प्रतिभा के दम पर जीत हासिल की थी.
रांची की दीपिका 14 साल की थीं जब उन्होंने पहली बार तीर-धनुष उठाया.. शुरुआत बांस के तीर-धनुष से हुई. हालांकि बाद में दीपिका को तीरंदाजी के साजोसामान भी मिले और वो तीरंदाजी स्कूल में भी दाखिल हो गईं.. जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा... एक के बाद एक कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगितायों में दीपिका ने भारत को पदक दिलाया... अब तक वो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 9 गोल्ड मेडल, 12 सिल्वर मेडल और सात ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम कर चुकी हैं. इन कामयाबियों के दम पर ही सोमवार को सामने आई वर्ल्ड आर्चरी रैंकिंग में सबसे ऊपर पहुंच कर दीपिका कुमारी विश्व की नंबर वन तीरंदाज बन गई है. ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है. साल 2012 में भी दीपिका तीरंदाजी में नंबर वन का रैंक हासिल कर चुकी हैं. दीपिका कहती हैं “उन्होंने इस खेल को नहीं बल्कि इस खेल ने उन्हें चुना है.”