आज का किस्सा फिल्मी दुनिया के सबसे बड़े घराने कपूर खानदान के लाडले शम्मी कपूर और गीता बाली की मोहब्बत का है.. केदार शर्मा ने शम्मी कपूर और गीता बाली को लेकर एक फिल्म बनाई रंगीन रातें..इस फिल्म में दोनों ने साथ में 4 महीने एक साथ काम करने के बाद शादी करने का फैसला कर लिया था..रौफ अहमद की किताब शम्मी कपूर: द गेम चेंजर में शम्मू कपूर ने अपनी शादी का किस्सा बड़े विस्तार बयां किया है..शम्मी ने बताया कि एक मंदिर में दोनों की शादी हुई जिसमें दोनों ही परिवार का कोई भी सदस्य शामिल नहीं था...अपनी ऑटोबायोग्राफी में शम्मी कहते हैं कि तब कई सवाल मन में उठ रहे थे..दरअसल, गीता मुझसे एक साल बड़ी थीं साथ ही वो मेरे पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ साल 1952 में आई फिल्म ‘आनंद मठ’ में काम कर चुकी थीं, भाई राज कपूर की फिल्म ‘बावरे नैन’ में उनकी हीरोइन रह चुकी थीं..शम्मी आगे कहते हैं कि लेकिन मैंने ठान लिया था कि परिवार कुछ भी रिएक्ट करे, मुझे शादी तो गीता से ही करनी है....
शम्मी कपूर अपनी शादी और गीता बाली को लेकर पूरी तरह से कॉन्फिंडेंट थे लेकिन शम्मी को बेपनाह मोहब्बत करने के बावजूद गीता खुद शादी को लेकर श्योर नहीं थीं..और इसकी वजह शम्मी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में बताई है..शम्मी कहते हैं कि हम दोनों की शादी में बड़ी परेशानी खुद गीता ही थीं..गीता ने मुझसे कहा कि मैं अपने परिवार को कैसे छोड़ सकती हूं..वो सब मुझ पर ही निर्भर हैं, उनके पास मेरे सिवा कोई और नहीं है
शम्मी कपूर के इस प्रपोज़ल को गीता बाली ने ठुकरा दिया..लेकिन शम्मी साहब ने हार नहीं मानी, 4 महीने बाद फिर वो घड़ी आई जब शम्मी ने गीता बाली को प्रपोज़ किया..तारीख थी 23 अगस्त साल 1955, मुंबई का होटल जुहू...शम्मी कहते हैं कि मैं उन दिनों उसी होटल में रह रहा था..मां-पिता जी पृथ्वी थिएटर्स के काम से भोपाल गए हुए थे..मैंने गीता को दूसरी बार प्रपोज़ किया..मुझे लगा वो हंसते हुए फिर बात टाल देगी..लेकिन मैं हैरान था कि गीता ने पलट कर जवाब देते हुए कहा चलो शादी कर लेते हैं..अभी शादी कर लो वरना फिर कभी नहीं हो पाएगी