आज का किस्सा फैज़ाबाद की उस अमीरन का जिसे ज़माने ने उमराव जान बना दिया...मिर्ज़ा हादी रुसवा के उपन्यास ‘उमराव जान’ पर मुज़फ्फर अली ने साल 1981 में एक लाजवाब फिल्म बनाई, इस फिल्म के लिए रेखा को नेश्नल अवॉर्ड मिला था...फिल्म में एक गाना था जिसके बोल थे – जुस्तजू जिसकी थी, उसको तो न पाया हमने..इस बहाने से मगर देख ली दुनिया हमने....कहते हैं ये गीत रेखा की निज़ी ज़िंदगी पर बिल्कुल सटीक बैठता था...ये फिल्म उस दौर में आई थी जब रेखा और अमिताभ बच्चन के इश्क के चर्चे हर फिल्मी मैग्ज़ीन के टॉप पर थे.फिल्म मेकिंग के दौरान मुज़फ्फर अली को रेखा की निजी जिंदगी को करीब से देखने का मौका मिला..एक बार एक इंटरव्यू में मुज़फ्फर अली ने कहा था – रेखा एक चलती-फिरती लाश जैसी बन गई थीं, इसमें सारी ग़लती अमिताभ बच्चन की थी
मुज़फ्फर अली ने इंटरव्यू में आगे कहा - उमराव जान के कुछ हिस्से दिल्ली में भी शूट हुए थे..तब अमिताभ अक्सर शूटिंग के दौरान सेट पर आते और बैठे रहते..जब भी रेखा अमिताभ के बारे में बात करतीं तो ‘इनको’ या ‘इन्होंने’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करती थीं, ठीक वैसे ही जैसे एक शादीशुदा पत्नी अपने पति को पुकारती है..मुझे लगता है कि वो खुद को शादीशुदा ही मानती थीं