आज का किस्सा आज़ादी से ज़रा पहले के उन दिनों का है जब दिलीप कुमार बहुत नए थे..साल 1946 में आई ज्वार भाटा फ्लॉप हो चुकी थी..फिल्मों से इतर देश चुनौतियों से घिरा हुआ था..देश में बंटवारे की चर्चा हर आम-औ-खास की जुबान पर थी...राजकुमार केसवानी अपनी किताब ‘मुगल-ए-आजम’ में लिखते हैं..जब ‘मुगल-ए-आजम’ बनाने की तैयारी हो रही थी तो उस वक्त नरगिस को अनारकली के किरदार के लिए कास्ट किया गया था. वहीं, शहजादे सलीम के लिए सप्रू फाइनल हुए थे....लेकिन उन्हीं दिनों आज़ादी के साथ ही देश दो हिस्सों में बंट गया और इस फिल्म के डायरेक्टर पाकिस्तान चले गए..इसका एक नतीजा ये हुआ कि फिल्म बंद हो गई..
इसके बाद कुछ वक्त बीता और फिर जब के. आसिफ ने मुगल-ए-आज़म बनाने का फैसला किया..तो उन्होंने अपने दोस्त दिलीप कुमार को शहजादा सलीम के किरदार के लिए कास्ट किया...अनारकली के लिए नरगिस पहले से ही फाइनल थीं...लेकिन जब दिलीप कुमार को कास्ट किए जाने की बात नरगिस को पता चली तो उन्होंने दिलीप साहब के साथ काम करने से साफ इनकार कर दिया. राजकुमार केसवानी ने अपनी किताब में इसकी दो वजह बताई हैं...पहली वजह राज कपूर से जुड़ती है, दरअसल उन दिनों नरगिस और राज कपूर के बीच एक बेहद मजबूत और गहरा रूमानी रिश्ता कायम हो चुका था. राज कपूर नहीं चाहते थे कि नरगिस उनके दोस्त दिलीप कुमार के साथ काम करें. नरगिस के लिए उस समय राज कपूर की हर बात बहुत मायने रखती थी...दूसरी वजह राजकुमार केसवानी अपनी किताब ‘मुगल-ए-आज़म’ में नरगिस के ना करने की जद्दनबाई को मानते हैं..राजकुमार अपनी किताब में लिखते हैं कि के. आसिफ की एक दूसरी फिल्म ‘हलचल ‘की शूटिंग के दौरान, जिसका डायरेक्श एस.के. ओझा कर रहे थे, उस दौरान नरगिस और उनकी मां जद्दनबाई....के. आसिफ और दिलीप कुमार से काफी नाराज हो गई थीं...कहते हैं कि दिलीप कुमार ने के. आसिफ से अपने संबंधों का इस्तेमाल करके फिल्म में नरगिस के साथ कुछ गैर जरूरी इंटीमेट सीन शामिल करवा लिए थे...किसी ने जद्दनबाई को कह दिया था कि दिलीप और के. आसिफ दोनों ही नरगिस पर डोरे भी डाल रहे हैं...