आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट क्या है?
शॉर्ट में इसे AFSPA कहा जाता है. इस कानून को सन 1958 में बनाया गया था. देश के पूर्वोत्तर राज्यों में राज्य सरकारें और स्थानीय प्रशासन प्रदेश में होने वाली हिंसा और अस्थिरता से निपटने में असमर्थ पाए गए थे. इस हिंसा से निपटने के लिए इस कानून को लाया गया था जिसमें सेना को हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में कार्रवाई के लिए विशेषाधिकार दिए गए थे. लेकिन बाद में कुछ राज्यों से AFSPA को हटा दिया गया. नागालैंड में भी ये कानून कई दशकों से लागू है, इसके तहत सैन्य बलों को विशेष अधिकार हासिल होता है. इस कानून के तहत सेना के जवान कानून तोड़ने वाले व्यक्ति पर गोली भी चला सकते हैं.
AFSPA कानून में क्या प्रावधान हैं?
इस कानून के तहत
- सेना किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार कर सकती है
- सशस्त्र बल बिना किसी वारंट के किसी के भी घर की तलाशी ले सकते हैं और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
- अगर कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है, बार बार कानून तोड़ता है तो मृत्यु तक बल का प्रयोग किया जा सकता है.
- अगर सशस्त्र बलों को शक है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या किसी बिल्डिंग में छिपे हुए हैं तो उस जगह या ढांचे को तबाह किया जा सकता है.
- वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है.
- सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की स्थिति में भी उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है.
क्यों होता है AFSPA कानून का विरोध?
कई बार सुरक्षा बलों पर इस एक्ट का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लग चुका है. ये आरोप फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न जैसे मामले को लेकर लगे हैं. बार बार आरोप लगते रहे हैं कि ये कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है. आपको बता दें इस कानून की तुलना अंग्रेजों के समय के 'रौलट एक्ट' से की जाती है. क्योंकि, इसमें भी किसी को केवल शक के आधार पर ही गिरफ्तार किया जा सकता है. यही कारण है कि इस कानून को हटाने की मांग तमाम एनजीओ और सामाजिक कार्यकर्ता भी करते रहते हैं