कोरोना महामारी ने पिछले दो सालों में सभी को घर की चार दीवारों में कैद रहने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि अब कोरोना के मरीजों की संख्या में कमी जरूर आ रही है जिसके चलते सभी गतिविधियां एक बार फिर से पहले की तरह शुरू हो रही हैं. इस बीच अब अमरनाथ यात्रा को भी मंजूरी मिल गई है.अमरनाथ यात्रा दो साल बाद फिर से शुरू हो रही है. श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड ने इसकी घोषणा करते हुए बताया कि इस साल यात्रा 30 जून से शुरू होगी और 43 दिनों बाद 11 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन ख़त्म होगी।। तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि दो साल बाद शुरू हो रही अमरनाथ यात्रा में क्या कुछ बदलाव हुए हैं? साथ ही बताएंगे कि इस यात्रा का महत्व और इतिहास क्या है ? बस आप वीडियो एक आखिर तक बने रहिए हमारे साथ..
सबसे पहले इस यात्रा के महत्व के बारे में आपको बताते हैं. कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 135 किलोमीटर दूर अनंतनाग जिले में बाबा अमरनाथ की गुफा है. ये गुफा समुद्रतल से 13,600 फुट की उंचाई पर है, जिसमें बर्फ का शिवलिंग खुद ही प्रकट होता है. इसलिए इन्हें बाबा बर्फानी भी कहा जाता है.. ये दुनिया का एकमात्र शिवलिंग है, जो चंद्रमा की रोशनी के आधार पर बढ़ता और घटता है, ये शिवलिंग श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को पूरा होता है और उसके बाद आने वाली अमावस्या तक आकार में काफी घट जाता है,ऐसा हर साल होता है.
अमरनाथ से जुड़ी एक कथा है जिसके मुताबिक, शिवजी ने पार्वती को अमरता की कथा सुनाई थी लेकिन कबूतर के एक जोड़े ने भी ये कथा सुन ली और अमर हो गया. आज भी कई श्रद्धालु कबूतर के जोड़े को अमरनाथ गुफा में देखने का दावा करते हैं. इतने ऊंचे और ठंड वाले इलाके में इन कबूतरों का जीवित रहना हैरान करता है. इसके बाद शिव और पार्वती अमरनाथ गुफा में बर्फ से बने लिंगम रूप में प्रकट हुए, जिनका आज भी प्राकृतिक रूप से निर्माण होता है और श्रद्धालु उसी के दर्शन के लिए जाते हैं.
अमरनाथ यात्रा कब शुरू हुई थी इस बात का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है लेकिन 12वीं सदी में लिखी गई कल्हण की पुस्तक राजतरंगिणी में अमरनाथ का जिक्र मिलता है. एक मान्यता के अनुसार, अमरनाथ गुफा की खोज सबसे पहले ऋषि भृगु ने की थी। दरअसल, जब एक बार कश्मीर घाटी पानी में डूब गई थी तो ऋषि कश्यप ने नदियों और नालों के जरिए पानी बाहर निकाला था.पानी निकलने के बाद ऋषि भृगु ने सबसे पहले अमरनाथ में शिव के दर्शन किए थे.
यात्रा में हुए बदलावों को बताएं तो अमरनाथ यात्रा का मार्ग समय के साथ बदलता रहा है. इस इलाके में सड़कों के निर्माण के साथ ही यात्रा मार्ग में भी बदलाव हुआ है. अब अमरनाथ की यात्रा के लिए दो रास्ते हैं.. श्राइन बोर्ड के अनुसार 'अनंतनाग जिले में पहलगाम ट्रैक और गांदरबल जिले में बालटाल, दोनों ही रास्तों से यात्रा एक साथ शुरू की जाएगी'. बालटाल से अमरनाथ गुफा का रास्ता कठिन और खड़ी चढ़ाई वाला है, जबकि पहलगाम से अमरनाथ पहुंचने का पहाड़ी रास्ता बालटाल से निकलने वाले रास्ते की तुलना में आसान है. अधिकतर लोग यात्रा के लिए पहलगाम वाला रास्ता ही चुनते हैं.
बता दें कि बाबा बर्फानी की यात्रा का मार्ग जोखिम भरा है, इसलिए वहां जाने वाले लोगों के लिए भी कुछ शर्तें निर्धारित की गई हैं. 6 हफ्ते से ज्यादा प्रेग्नेंट महिलाएं, 75 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग और 13 साल से कम उम्र के बच्चे अमरनाथ की यात्रा नहीं कर सकते. इसके अलावा, सभी लोग अमरनाथ यात्रा के लिए आवेदन कर सकते हैं.