साइकिल की इनदिनों खूब चर्चा हो रही है. समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल पर पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने जोरदार हमला बोला. 20 फरवरी को यूपी के हरदोई की एक रैली में प्रधानमंत्री मोदी ने साइकिल को 2008 में हुए अहमदाबाद बम ब्लास्ट से जोड़ दिया. पीएम मोदी ने कहा कि इनका जो चुनाव चिन्ह साइकिल है उस पर अहमदाबाद में बम रखे गए थे, तब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, उसी दिन मैंने संकल्प लिया था कि मेरी सरकार इन आतंकवादियों को पाताल से भी खोजकर सजा देगी. पीएम मोदी ने कहा कि मैं हैरान हूं कि ये आतंकी धमाकों में साइकिल का इस्तेमाल क्यों करते थे? तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह साइकिल का दिलचस्प इतिहास क्या है ? साथ ही बताएंगे की साइकिल कैसे बनी सपा का इलेक्शन सिंबल? बस वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ...
समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी की स्थापना की थी. 1993 में यूपी विधानसभा के चुनाव हुए और इसी चुनाव में पार्टी को साइकिल का चुनाव चिन्ह मिला. समाजवादी पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि जब 1993 के चुनाव चिन्ह में नई नई बनी पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए चुनाव चिन्ह सेलेक्ट करने की बारी आई तो नेताजी और दूसरे वरिष्ठ नेताओं ने साइकिल को अपना चुनाव चिन्ह चुना. हालांकि दूसरे चुनाव चिन्ह के ऑप्शन भी थे. लेकिन साइकिल उन्हें सबसे अच्छी लगी. उस वक्त साइकिल किसानों और गरीबों की सवारी थी. मजदूर और मध्यवर्गीय परिवार के लोग साइकिल चलाते थे. साइकिल सस्ती तो थी ही इसे चलाना सेहत के लिए भी फायदेमंद था. उसके बाद सपा ने हर चुनाव साइकिल के निशान पर लड़ा.
जब मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी का विस्तार कर रहे थे तब दोनों जमकर साइकिल चलाया करते थे. यहां तक की मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद भी साइकिल पर चला करते थे.
समाजवादी पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि मुलायम सिंह यादव तीन बार विधायक चुने जाने के बाद भी साइकिल से चलते थे. वो 1977 तक कहीं आने जाने के लिए साइकिल का ही इस्तेमाल किया करते थे. उसके बाद पार्टी के कुछ नेताओं ने पैसे इकट्ठा कर उनके लिए एक कार खरीदी.
चुनावी माहौल में भले ही साइकिल पर हमले किए जा रहे हों लेकिन पार्टी के लोगों को लगता है कि साइकिल का चुनाव चिन्ह एक बेहतर चुनाव चिन्ह है. ये पार्टी की गरीबों, दलितों, किसानों और मजदूर वर्ग के प्रति समर्थन और प्रतिबद्धता को दिखाता है. साइकिल का पहिया ये दिखाता है कि समाज और समाजवादी निरंतर चलते रहते हैं, जबकि इसका हैंडल समाज के संतुलन को दर्शाता है.
एक पार्टी के तौर पर सपा सबसे पहले 1993 के विधानसभा चुनाव में उतरी. सपा ने 256 सीटों पर चुनाव लड़ा और 109 सीटों पर कामयाबी पाई. मुलायम सिंह यादव दूसरी बार यूपी के सीएम बने.
इसके पहले 1989 से 1991 तक मुलायम सिंह यादव सीएम रहे थे लेकिन उस वक्त वो जनता दल का हिस्सा हुआ करते थे, जिसका चुनाव चिन्ह था पहिया छाप.
उसके पहले मुलायम सिंह यादव ने दूसरी पार्टियों और दूसरे चुनाव चिन्हों पर चुनाव लड़ा था. वो पहला विधानसभा चुनाव 1967 में जीते. उस वक्त वो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे, जिसका चुनाव चिन्ह था बरगद छाप. इसके बाद मुलायम बैलों की जोड़ी और कंधे पर हल धरे किसान के चुनाव चिन्ह पर भी चुनाव लड़े और जीते.
जब अखिलेश ने समाजवादी पार्टी की कमान संभाली तो उन्होंने भी साइकिल से कई यात्राएं और रैलियां की. पिछली अखिलेश सरकार ने अपने कार्यकाल में यूपी की सड़कों पर साइकिल ट्रैक का निर्माण करवाया था. लड़कियों के बीच साइकिल बांटे गए थे. यहां तक कि 2012 का चुनाव जीतने से पहले अखिलेश ने पूरे राज्य में साइकिल से यात्राएं की थी और कार्यकर्तीओं और वोटर्स को मोबलाइज किया था. अभी भी वो कई बार साइकिल पर इंटरव्यू देते दिख जाते हैं.
साइकिल सपा का चुनाव चिन्ह तो है ही. इससे मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की पहचान जुड़ी है. इसी के सहारे दोनों ने सड़क से लेकर सत्ता तक का सफर पूरा किया.