इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग आखिर होती क्या है?
इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग क्या होता है?
रेट्रोफिटिंग का मतलब किसी भी नई टेक्नोलोजी या फिर नए फीचर्स को किसी पुराने सिस्टम में जोड़ना होता है. जैसे कि किसी पावर प्लांट की Efficiency को बढ़ाने के लिए उसके किसी सिस्टम में रेट्रोफिटिंग की जाती है. ऐसे ही किसी भी पुराने डीजल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में चेंज करने को इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग कहा जाता है.
सीधे शब्दों में कहें तो इलेकट्रिक रेट्रोफिटिंग में फ्यूल से एनर्जी बनाकर उसे पावर में कनवर्ट करने वाले इंजन की जगह पर इलेक्ट्रिक Equipments लगाए जाते हैं जिनसे व्हीकल को चलाने के लिए पावर प्रोड्यूस की जाती है. इसी टेक्नीक की मदद से यूरोप में कई डीजल ट्रकों और बसों से कार्बन उत्सर्जन को कम किया गया है. लेकिन इस पूरे प्रोसेस के कुछ रूल्स भी हैं. इसे लेकर कानून बनाया गया है
चलिए अब इसके खर्च पर भी बात कर लेते हैं
इलेक्ट्रिक रेट्रोफिटिंग में कितना खर्च आएगा?
नॉर्मल कार को इलेक्ट्रिक कार में बदलवाने में कितना खर्च आता है ये पूरी तरह से कार में लगने वाली मोटर, कंट्रोलर, रोलर और बैटरी के इस्तेमाल पर डिपेंड करता है. जितने किलोवॉट की बैटरी लगवाएंगे और जितने किलोवॉट की मोटर लगवाएंगे उसके बेस पर आपकी कार में खर्च आएगा. जैसे अगर आप 20 किलोवॉट की इलेक्ट्रिक मोटर और 12 किलोवॉट की लीथियम आयन बैटरी अपनी कार में लगवाते हैं तो आपके जेब से करीब 4 लाख रुपये तक जा सकते हैं
अब आपको इसके प्रोसेस के बारे में बताते हैं
क्या होगा इसका प्रोसेस?
डीजल कार में इलेक्ट्रिक किट लगाने की इजाजत तभी मिलगी, जब टेस्टिंग एजेंसी डीजल कार इंजन के फिटनेस को चेक करके अप्रूव करेगी. डीजल कार को सबसे पहले उसके सभी Internal combustion engine के कपोनेंट्स जैसे इंजन, फ्यूल टैंक, एग्जॉस्ट, ड्राइवट्रेन से अलग कर दिया जाएगा. इसके बाद कार में Electric Vehicle System लगाया जाएगा जिसमें इलेक्ट्रिक मोटर, एक हाई-वोल्टेज वायरिंग सर्किट, बैटरी पैक और कंट्रोल यूनिट होगी.