'जाको राखे साइयां मार सके ना कोय'...4 दिनों से 60 फीट गहरे बोरवेल में फंसे 10 साल के बच्चे राहुल पर ये लाइनें बिल्कुल फिट बैठती हैं। रेस्क्यू टीम की मेहनत रंग लाई और राहुल को 14 जून की देर रात बोरवेल से सकुशल बाहर निकाल लिया गया है। इसके साथ ही 104 घंटों तक चला लंबा रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म हो गया। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में चल रहे इस रेस्क्यू ऑपरेशन पर पूरे देश की नजरें टिकी हुईं थीं। लोग राहुल की सलामती की दुआएं मांग रहे थे। लोगों की दुआएं रंग लाई और राहुल को रेस्क्यू टीम ने दिन-रात एक कर बचा लिया। बताया जा रहा है राहुल मूकबधिर है, इसके अलावा वो मानसिक रूप से भी कमजोर है। इसके बावजूद इस 10 साल के बच्चे ने हिम्मत नहीं हारी। रेस्क्यू टीम का कहना है कि गड्ढे में बच्चे के साथ एक सांप और मेंढ़क भी थे। राहुल की बहादुरी की कहानी जब सीएम भूपेश बघेल ने सुनी तो वो भी बिना तारीफ किए नहीं रह सके। सीएम बघेल ने रेस्क्यू में लगी NDRF, SDRF, आर्मी और जिला प्रशासन को भी धन्यवाद दिया है।
राहुल की सलामती के लिए देशभर में दुआएं और प्रार्थना की जा रही थी। अब जबकि राहुल बाहर आ चुका है, ऐसे में लोग उसके सकुशल घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। रेस्क्यू के बाद राहुल को बिलासपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जहां उसकी हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है।
5 दिन तक जिला प्रशासन, पुलिस से लेकर NDRF, सेना, SDRF समेत कई सुरक्षा संस्थानों के सैकड़ों लोग राहुल के रेस्क्यू के लिए दिन-रात प्रयास कर रहे थे। इसमें कई तरह की चुनौतियां सामने आईं, लेकिन रेस्क्यू टीम का हौसला नहीं डिगा। इस तरह ये देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन बताया जा रहा है।
10 जून की शाम 5 बजे से राहुल को बचाने की कोशिश शुरु हो गई थीं। सबसे पहले उसे पाइप के जरिए ऑक्सीजन पहुंचाई गई। अगले दिन यानि 11 जून की सुबह 5 बजे NDRF पहुंची। बच्चे को खाने-पीने की चीजें पहुंचाई गईं। बता दें बच्चे के मूवमेंट की जानकारी लेने के लिए गुजरात से रोबोटिक्स टीम बुलाई गई। इस दिन शाम 4 बजे तक 40 फीट गड्ढे की खुदाई कर ली गई थी। रात 8 बजे कलेक्टर ने गड्ढ़े तक टनल बनाए जाने का फैसला लिया। 12 जून की सुबह 5 बजे सुरंग बनाने का काम शुरू हुआ। सुबह 10 बजे रोबोटिक्स इंजीनियर और उनकी टीम मौके पर पहुंची। रोबोट की मदद से बच्चे की लोकेशन ट्रैक करने की कोशिश की जा रही थी लेकिन कामयाबी नहीं मिली। ड्रिलिंग का काम जारी था, लेकिन चट्टान की वजह से टनल बनाने में दिक्कत हो रही थी। इसके अलावा बोरवेल में पानी भरने की वजह से भी मुश्किल हो रही थी। 14 जून की दोपहर साढ़े तीन बजे सेना ने रेस्क्यू ऑपरेशन की कमान संभाली। और रात के 12 बजने से पहले ही राहुल को बोरवेल से निकाल लिया गया। इस दौरान बच्चे को खाने-पीने की चीजे पहुंचाई जाती रहीं। बोरवेल से निकलने के बाद राहुल थोड़ा कमजोर जरूर दिखाई दे रहा था। लेकिन उसकी हालत खतरे से बाहर है। जल्द ही राहुल हंसता-खेलता हुआ अपने परिवार के पास वापस लौटेगा। इससे पहले हरियाणा के कुरूक्षेत्र में 21 जुलाई 2006 को ऐसे ही 50 फीट के बोरवेल में फंसे 5 साल के प्रिंस को बचाने के लिए 50 घंटे ऑपरेशन चलाया गया था।