आज जिस रफ्तार से दुनिया में इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट्स का चलन बढ़ रहा है। उतनी ही तेजी से इनसे पैदा होने वाला कचरा भी मुसीबत बनता जा रहा है। क्या आप जानते हैं आपके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आपकी जिंदगी में जहर घोल रहे हैं। इनसे निकलने वाला ई-वेस्ट पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। आइए जानते हैं क्या होता ई-वेस्ट। और ये हमारी दुनिया के लिए ये कितना बड़ा खतरा है?
हम अपने घरों और उद्योगों में जिन इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स सामानों को इस्तेमाल के बाद फेंक देते है… वहीं बेकार फेंका हुआ कचरा इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट यानि ई-वेस्ट कहलाता है। इनसे समस्या तब उत्पन्न होती है जब इस कचरे का उचित तरीके से कलेक्शन नहीं किया जाता। साथ ही इनके गैर-वैज्ञानिक तरीके से निपटान किए जाने की वजह से पानी, मिट्टी और हवा जहरीले होते जा रहे हैं। जिससे लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
अब बात करें भारत की तो, हमारा देश भी लगातार ई-वेस्ट का हब बनता जा रहा है। ई-वेस्ट पैदा करने के मामले में भारत तीसरे नंबर पर है।एक आंकड़ा है कि देश में पैदा होने वाले कुल ई-वेस्ट का 95 फीसदी या तो कबाड़ी वाले या रद्दी वाले कलेक्ट करते हैं। जो गैर-कानूनी होने के साथ-साथ प्रतिबंधित भी है। हमारे देश में आमतौर पर ई- वेस्ट को जला दिया जाता है या लैंडफिल्ड पर छोड़ दिया जाता है। जिसकी वजह से हवा, पानी और जमीन तीनों दूषित होते हैं।WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में भारत में 17 लाख लोगों की जान एयर पॉल्यूशन की वजह से गई…ये आंकड़ा भयावह है। इसके अलावा दूषित पानी पीने से भी लाखों लोग हर साल बीमार पड़ते हैं और हजारों लोगों की मौत हो जाती है।लेकिन भारत में ई-वेस्ट के निपटान के लिए सरकार गंभीर नहीं है।
अब बात करें पूरी दुनिया से निकलने वाले ई-वेस्ट की तो, संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी रिपोर्ट ‘ग्लोबल ई वेस्ट मॉनिटर 2020’ के मुताबिक, 2019 में करीब 5।36 करोड़ मीट्रिक टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा उत्पन्न हुआ था जो। 2030 में बढ़कर 7।4 करोड़ मीट्रिक टन पर पहुंच जाएगा। 2019 में अकेले एशिया में सबसे ज्यादा 2।49 करोड़ टन कचरा उत्पन्न हुआ था। इसके बाद अमेरिका में 1।31 करोड़ टन। यूरोप में 1।2 करोड़ टन। अफ्रीका में 29 लाख टन और ओशिनिया में 7 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उत्पन्न हुआ था।
अब अगर भारत की बात की जाए तो CPCB ने 2020 में रिपोर्ट जारी की थी। जिसमें बताया गया है कि 2019-20 में भारत में 10 लाख टन ई-कचरा पैदा किया था।जबकि कचरा कलेक्शन केवल 10 फीसदी हुआ। इसका मतलब है, कचरे की बहुत बड़ी मात्रा कलेक्ट ही नहीं होती है।रिसाइकल करना तो बड़ी दूर की बात है।बस यही समस्या की असली जड़ है।
ई-वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स 2016 के मुताबिक इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट बनाने वाले निर्माताओं को ही अंतत: ई-वेस्ट का कलेक्शन करना होता है। देश में करीब 1630 ऐसे निर्माताओं को ईपीआर (एक्स्टेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पांसिबिलिटी) ऑथराइजेशन भी दिया गया है, जिनकी क्षमता 7 लाख टन से अधिक ई-वेस्ट प्रोसेसिंग की है।लेकिन, ई-वेस्ट कलेक्शन से संबंधित डेटा कुछ और ही कहानी बताते हैं। जिसका सीधा सा मतलब है कि ईपीआर ऑथराइजेशन प्राप्त निर्माता अपने दायित्व का निर्वहन ठीक से नहीं कर रहे।
यदि वैश्विक स्तर पर 2019 से जुड़े आंकड़ों को देखें तो उस साल केवल 17।4 फीसदी ई-वेस्ट इकट्ठा और रिसाइकल किया गया था। जबकि 82।6 फीसदी हिस्से को ऐसे ही फेंक दिया गया था। जिसका मतलब है कि इस कचरे में मौजूद सोना, चांदी, तांबा, प्लेटिनम और अन्य कीमती सामग्री को ऐसे ही बर्बाद कर दिया गया।
यदि इसकी कुल कीमत की बात करें तो वो करीब 413,277 करोड़ रुपए थी, जोकि कई देशों के जीडीपी से भी ज्यादा है। आमतौर पर इस कचरे को फेंक दिया जाता है पर यदि इसका ठीक तरीके से नियंत्रण और प्रबंधन किया जाए तो यह आर्थिक विकास में मदद कर सकता है। साथ ही कचरे से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को भी कम किया जा सकता है।