देश के पांच राज्यों में प्रदेश की जनता द्वारा अपने मुख्यमंत्री को चुनने की प्रक्रिया को शुरू किया जा चुका है..जहां उत्तर प्रदेश में दो चरणों की वोटिंग हो चुकी है.वहीं उत्तराखंड और गोवा जैसे राज्यों में भी वोट पड़ चुके हैं.. उत्तर प्रदेश में 05 चरणों की वोटिंग के साथ पंजाब और मणिपुर में वोटिंग होनी है.ये वोटिंग इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी कि EVM के जरिए हो रही है. ये बहुत ही आसान तरीका है जिससे काउंटिंग करना भी इजी हो जाता है और चीटिंग के chances भी कम होते हैं. तो आज के know this video में हम आपको EVM से जुड़ी कुछ जरूरी बातें बताएंगे। साथ ही बताएंगे कि ये EVM आखिर होती क्या है और ये काम कैसे करती है? बस आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ..
सबसे पहले आपको बताते हैं कि ईवीएम क्या होती है? इसका पूरा इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन है. इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो यूनिट से बनी होती हैं, जिसमें एक तो कंट्रोल यूनिट है और एक बैलेटिंग यूनिट. जब आप वोट देने जाते हैं तो चुनाव अधिकारी बैलेट मशीन के जरिए वोटिंग मशीन को ऑन करता है, जिसके बाद आप वोट दे सकते हैं. इस यूनिट में मतदाताओं के नाम लिखे होते हैं और उन्हें चुनकर आप वोट देते हैं. यानी ईवीएम पूरे सेट को कहा जाता है, जिससे वोटिंग होती है.ईवीएम की एक ख़ास बात ये भी है कि ये बिजली से नहीं चलती। ये बैटरी से चलती है. ऐसे में अगर लाइट न हो तो भी वोटिंग प्रोसेस रुकता नहीं है.
EVM की कीमत की बात करें तो चुनाव आयोग की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार, EVM कई तरह की होती हैं.पहली M2 EVM (2006-10), जिसमें नोटा के साथ ज्यादा से ज्यादा 64 कैंडिडेट्स के निर्वाचन कराए जा सकते हैं. यानी चार वोटिंग मशीन तक जोड़ी जा सकती हैं. दोनों यूनिट मिलाकर इसकी लागत 8670 रुपये होती है.फिर आती है M3 EVM, जिसमें ईवीएम से 24 बैलेटिंग यूनिट को जोड़कर नोटा सहित अधिकतम 384 कैंडिडेट्स के लिए निर्वाचन कराया जा सकता है. दोनों यूनिट मिलाकर इसकी लागत 17,000 रुपये होती है. सही मायनों में बेलेट पेपर के मुकाबले ईवीएम से खर्च कम होता है. इलेक्शन कमीशन के मुताबिक, हर निर्वाचन के लिए लाखों की संख्या में मतपत्रों की प्रिंटिंग, उनके ट्रांसपोर्ट, स्टोरेज, आदि के अलावा, वोट काउंटिंग स्टाफ में होने वाले खर्च की भरपाई ईवीएम से हो जाती है.
अब आपको बताते हैं कि वोटिंग के बाद EVM कहां और कितनी सुरक्षा में रखी जाती हैं? वोटिंग ख़त्म होने के बाद ईवीएम को सील कर दिया जाता है. कैंडिडेट या उनके पोलिंग एजेंट सील होने के बाद अपने साइन करते हैं. फिर वो मतदान केंद्र से स्ट्रांग रूम ईवीएम के साथ जाते हैं. स्ट्रांग रूम का मतलब है वो कमरा, जहां ईवीएम मशीनों को पोलिंग बूथ से लाकर रखा जाता है. उसकी सुरक्षा अचूक होती है. यहां हर कोई नहीं पहुंच सकता.स्ट्रांग रूम की सुरक्षा चुनाव आयोग थ्री लेवल पर करता है.इसकी भीतरी सुरक्षा का घेरा केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों के जरिए बनाया जाता है. इसके अंदर एक और सुरक्षा होती है, जो स्ट्रांग रूम के भीतर होती है. ये केंद्रीय बल के जरिए की जाती है. सबसे बाहरी सुरक्षा घेरा राज्य पुलिस बलों के हाथों में होता है. दिल्ली में ये काम दिल्ली पुलिस का है.ईवीएम रखने के बाद स्ट्रांग रूम को सील लगाकर बंद कर दिया जाता है,स्ट्रांग रूम के एंट्री पाइंट पर सीसीटीवी कैमरा होता है. जिससे हर आने जाने वाले की तस्वीर इस पर रिकॉर्ड होती रहती है. अगर कोई संबंधित अधिकारी स्ट्रांग रूम में जाना चाहे तो उसे सुरक्षा बलों को दी गई लॉग बुक पर आने का टाइम, DURATION और नाम की एंट्री करनी होती है. CANDIDATES को भी स्ट्रांग रूम की देखरेख की इजाजत होती है. एक बार स्ट्रांग रूम सील होने के बाद काउंटिंग के दिन सुबह ही खोला जाता है.. इन सारे मानकों का हर हाल में पालन करना होता है. अगर काउंटिंग हॉल और स्ट्रांग रूम के बीच ज़्यादा दूरी है तो दोनों के बीच बैरकेडिंग होनी चाहिए. इसी के बीच से ही ईवीएम को काउंटिंग हॉल तक ले जाया जाता है।।
ईवीएम में जब वोट डाले जाते हैं तो वोटों का डाटा उसकी कंट्रोल यूनिट में सुरक्षित हो जाता है. वैसे तो एक ईवीएम की उम्र 15 साल होती है. इसके बाद उसको रिटायर कर दिया जाता है. लेकिन अगर डाटा की बात करें तो इसमें डाटा को ताउम्र सुरक्षित रखा जा सकता है. इसका डाटा तभी हटाया जाता है जब इसे डिलीट करे नई वोटिंग के लिए तैयार करना होता है.