पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं. इसके साथ ही अब डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ने की आशंकाएं तेज हो गई हैं. पिछली बार इन्हीं पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के समय की बात हो या लोकसभा चुनाव की.. अंतिम चरण के बाद दाम बढ़ने लगे थे. इस कारण लोग पहले ही पेट्रोल डीजल खरीद रहे हैं. चुनाव से पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आई गिरावट से वाहन चालकों को राहत मिली थी लेकिन चुनाव में अंतिम चरण का मतदान होने के बाद एक बार फिर दामों में इजाफा होने का अंदेशा बन गया है. अब सवाल ये है कि तेल की कीमतें आखिर तय कैसे होती हैं? पेट्रोल-डीजल के दाम घटने-बढ़ने की वजह क्या होती है? KNOW THIS के इस वीडियो में हम आपको इस बारे में सब कुछ बताएंगे बस आप बने रहिए हमारे साथ.
सबसे पहले आपको उन फैक्टर्स के बारे में बताते हैं जो तेल के दाम तय करते हैं.
तेल की कीमतें दो बड़े फैक्टर्स पर निर्भर करती हैं. पहला international market में क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल के दाम और दूसरा सरकारी टैक्स.
जब तेल के दाम बढ़ते हैं तो लगता है कि सरकार ने तेल के दाम बढ़ा दिए. लेकिन क्रूड ऑयल पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं होता. सरकार सिर्फ जरूरत पड़ने पर अपने टैक्स घटा सकती है. यानी तेल के दाम अचानक बेकाबू होने पर जनता के फायदे के लिए टैक्स का अपना हिस्सा कम कर सकती है.
यहां गौर करने की बात ये है कि जून 2017 के बाद सरकार ने पेट्रोल-डीजल के दाम से अपना नियंत्रण हटा लिया है. अब अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में रोज के उतार चढ़ाव के हिसाब से तेल कंपनियां खुद ये कीमतें तय करती हैं. आप जानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत रोज बदलते foreign currency rate पर निर्भर करता है. भारत में ये क्रूड ऑयल सऊदी अरब, इराक, ईरान, कुवैत समेत कई और देशों से आते हैं.
अब सवाल ये है कि कच्चे तेल के दाम पर देश में कौन-कौन से टैक्स जोड़े जाते हैं?
सबसे पहले विदेशों से खरीदे गए तेल पर ट्रांसपोर्ट टैक्स जोड़ा जाता है. फिर क्रूड ऑयल को रिफाइनरी में साफ किया जाता है जिसका अलग टैक्स बनता है. इसके बाद इस पर केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी और डीलर का कमीशन जोड़ा जाता है. राज्यों के टैक्स भी होते हैं. इन सारे खर्च और टैक्स को जोड़ने पर जो कीमत तय होती है वही हम और आप पेट्रोल पंप पर चुकाते हैं. यानी कच्चे तेल की खरीदारी के बाद इन्हीं खर्च और टैक्स की वजह से पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ जाते हैं. और जब केंद्र और राज्य सरकारें अपने टैक्स कम करती है तो लोगों को राहत मिलती है.
अब आपको बताते हैं कि ग्लोबल मार्केट में कच्चा तेल सस्ता होने पर भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम क्यों नहीं होतीं?
इसकी एक वजह है सरकारी टैक्स - जो कि केन्द्र और राज्य सरकारें अलग-अलग लगाती हैं. इसमें केन्द्र सरकार के टैक्स का हिस्सा राज्य सरकारों से कहीं ज्यादा होता है. औसतन राज्य सरकारें एक लीटर पेट्रोल पर करीब 20 रुपये वैट लगाती है जबकि केंद्र सरकार करीब 33 रुपये टैक्स वसूलती है. यानी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में आधे से ज्यादा दाम टैक्स के तौर पर लिए जा रहे हैं. यही वजह है कई बार अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने के बावजूद सरकारी टैक्स बढ़ा देने से पेट्रोल डीजल के कीमतें बढ़ जाती हैं.