कहते हैं किसी देश के विकास का अंदाजा उसकी सड़कों को देखकर लगाया जा सकता है... जबकि भारत में विकास तो बहुत हुए लेकिन ऐसे इलाकों की कोई कमी नहीं है जहां सड़क में गड्ढे ही गड्ढे नजर आते हैं... और मॉनसून में तो इन गड्ढों का गहराई इतनी बढ़ जाती है कि उनमें पूरी गाड़ी तक समा जाए.
सड़कों पर कैसे बनते हैं गड्ढे?
हम अक्सर देखते हैं कि बारिश के मौसम में सड़कों पर गड्ढे काफी बढ़ जाते हैं. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बरसात में अक्सर नालियां पूरी तरह पानी से भर जाती हैं और इससे पाइपलाइन में लीकेज शुरू हो जाती है. पानी धीरे-धीरे धरती की सतहों में चला जाता है, सड़क अंदर से खराब होने लगती है और पानी के साथ अंदर का मलवा बहने लगता है. लिहाजा खोखली सड़कें गाड़ियों के दबाव में टूट कर अंदर धंस जाती है और गड्ढे का आकार ले लेती है. ये गड्ढा कितना बड़ा और गहरा होगा ये पाइपलाइन और लीकेज की साइज पर डिपेंड करता है. इसके अलावा गर्मी के चलते सड़कों पर दरारें भी आ जाती हैं. जब पानी इन दरारों से अंदर जाता है तो नीचे की जमीन खराब होती है. और धीरे-धीरे सड़क कच्ची होने लगती है.
गड्ढों से क्या नुकसान है?
एक RTI में इस बात का खुलासा हुआ कि मुंबई जैसे शहर में BMC ने पिछले 20 सालों में सड़कों के repair, maintenance और construction लगभग 21 हजार करोड़ रुपये खर्च किए हैं. साल 2020 में भारत में कुल मिलाकर 3564 रोड एक्सीडेंट पॉटहोल्स की वजह से हुए. वहीं अगर 5 सालों की बात करें तो ये आंकड़ा 15,000 से भी ज्यादा है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि औसतन border clashes या terrorist incidents की तुलना में गड्ढे से संबंधित दुर्घटनाओं से ज्यादा लोग मरते हैं. पिछले तीन सालों में, गड्ढों से संबंधित 25,000 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है.
गड्ढों की वजह से ट्रैवलिंग टाइम बढ़ता है जिसके चलते गाड़ी ड्राइव कर रहे लोगों में स्ट्रेस लेवल में वृद्धि, नींद की गड़बड़ी, थकान और ध्यान लगाने में दिक्कत जैसी समस्याएं सामने आती हैं. इसके अलावा फ्यूअल की ज्यादा खपत और खराब सड़कों से गाड़ियों को पहुंचने वाला नुकसान भी बड़ी समस्या है.
पॉटहोल्स से इकोनॉमी पर क्या असर होता है?
आपको जानकर हैरानी होगी कि खराब सड़कों की वजह से हर साल देश को हजारों करोड़ रुपयों का नुकसान होता है. टमाटर, केले, पपीते और आम जैसे फलों और सब्जियों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में खराब सड़कों की वजह से काफी नुकसान होता है. सड़कों में गड्ढों की वजह से पैकिंग पर खर्चा ज्यादा किया जाता है. इसके बाद भी मंडी तक पहुंचते-पहुंचते लगभग 15 फीसदी सामान का नुकसान हो जाता है. सड़कों पर गड्ढे ना हों तो व्यापार-कारोबार तो बढ़ेगा ही साथ ही लोगों की जानें बचेगी और इलाज में खर्च हो रहे करोड़ों रूपये की भी बचत होगी.
गड्ढों से छुटकारा कैसे मिले?
गड्ढों से बचने के लिए, पाइपलाइन्स की नियमित जांच होना जरूरी है. इंजीनियरों का कहना है कि इस तरह के गड्ढों से बचने के लिए एक ऐसे सिस्टम की जरूरत है जिसमें रिसाव को पहले ही बंद किया जा सके. एक ऐसा सिस्टम जिसमें पाइपलाइन में स्टार्टिंग और एंड प्वाइंट पर फ्लो की जांच हो सके. इससे अधिकारियों को रिसाव के बारे में जानने में मदद मिलेगी. अगर लीकेज को जल्दी बंद कर दिया जाए, तो गड्ढों से बचा जा सकता है. देश को जरूरत है बेहतर मरम्मत के तरीके या पूरी तरह से नई प्रणाली की जो गड्ढों को बनने से पहले ही खत्म कर दे.
इस तरह के कुछ सामाधान पहले से मौजूद भी हैं जिनमें से एक व्हाइट टॉपिंग है. इसे गुजरात, बैंगलोर, पुणे, मुंबई, ठाणे, नई दिल्ली जैसे कई प्रमुख शहरों में सफलतापूर्वक लागू किया गया है. ये न सिर्फ गड्ढा बनने को रोकता है बल्कि कम फ्यूअल की खपत, कम ट्रेवलिंग टाइम और साउंड पॉल्यूशन में कमी जैसे कई फायदे देता है. इसके लिए जीरो मेंटेनेंस की जरूरत होती है और इसका इस्तेमाल भी आसानी से किया जा सकता है.