पार्वो वायरस एक बेहद संक्रामक वायरल बीमारी है, जो कुत्तों और उसके बच्चों में फैलती है. भारत में पहली बार यह वायरस 1980 में पाया गया था. Parvovirus कुत्तों के intestinal tract को प्रभावित करता है. इस वायरस के संक्रमण के बाद 90 फीसदी मामलों में मौत का खतरा रहता है. लेब्राडोर, जर्मन शेफर्ड और रॉटविलर्स नस्ली में इस वायरस का संक्रमण होने का खतरा ज्याोदा है. कुत्तों में पार्वो वायरस के संक्रमण के बाद डायरिया, उल्टी होना, वजन घटना, dehydration और सुस्तस रहने जैसे लक्षण दिखते हैं. ऐसे लक्षण दिखने पर veterinary doctor से सम्पnर्क करें.
कैसे फैलता है यह संक्रमण?
ये वायरस किसी संक्रमित कुत्ते के direct contact से या किसी दूषित वस्तु के indirect contact से फैलता है, जिसमें संक्रमित कुत्तों को संभालने वाले लोगों के हाथ और कपड़े भी शामिल हैं. इसके अलावा कुत्ते संक्रमित मल को सूँघने, चाटने या सेवन करने पर भी पार्वो वायरस के संपर्क में आ सकते हैं. इसलिए अपने पालतू कुत्ते को टहलाते समय इन बातों का खास ध्यापन रखें.
इंसानों को पार्वो वायरस से कितना खतरा?
अब तक ऐसा कोई भी मामला सामने नहीं आया है जिसमें यह साबित हुआ हो कि यह वायरस कुत्ते से इंसान में पहुंचा. हालांकि इंसानों के जरिए यह कुत्तों में जरूर पहुंच सकता है. जैसे- किसी संक्रमित कुत्ते से इंसान के हाथ, कपड़ों या दूसरे हिस्सों् में यह वायरस पहुंचा है और वो इंसान किसी स्वीस्थत कुत्ते के सम्प,र्क में आया है तो वह जानवर संक्रमित हो सकता है.
इससे बचने का क्या उपाय है ?
Parvovirus का कोई इलाज नहीं है लेकिन अगर किसी कुत्ते का वैक्सीुनेशन हो चुका है तो उनमें ये संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है. पहली डोज 45 दिन की उम्र में और दूसरी पहली खुराक के 21 दिन बाद दी जाती है. कुत्तों को वायरस से बचाने के लिए ये जरूरी है कि जब वो छोटे हों तभी उन्हें टीका लगवाएं और फिर हर साल ऐसा करना जारी रखें. पशु चिकित्स कों का कहना है कि फिलहाल उन कुत्तों को बाहर ले जाने से बचना होगा, जिन्हेंं दोनों डोज नहीं लगी हैं. लोगों को सलाह दी जा रही है कि अपने कुत्ते को ग्राउंड के कॉन्टेक्ट में आने से भी बचाएं. पार्वो, एक resistant virus होने की वजह से पर्यावरण में आसानी से जीवित रहता है और पत्तियों-घास जैसी चीजों को भी दूषित कर सकता है.