शस्त्र विद्या में निपुण अखाड़ा साधुओं का दल होता है. कहा जाता है कि अलख शब्द से ही अखाड़ा शब्द निकला है. पहले अखाड़े शब्द का इस्तेमाल नहीं किया जाता था और इन्हें साधुओं का बेड़ा ही कहा जाता था. लेकिन मुगल काल में अखाड़ा शब्द का इस्तेमाल किया जाने लगा. ऐसी भी मान्यता है कि जब समाज में धर्म विरोधी शक्तियां हावी होने लगीं तो उस वक्त गुरु शंकराचार्य जैसे कई साधु-सन्यासियों ने ऐसे मठों की स्थापना की. उनका मानना था कि आध्यात्मिक शक्ति के जरिए चुनौतियों का मुकाबला नहीं किया जा सकता है इसलिए उन्होंने शारीरिक बल की जरुरत महसूस की. इसके बाद ऐसे दलों की शुरुआत हुई और इसमें शस्त्र विद्या को अहम स्थान दिया गया. आगे चलकर इन मठ या ग्रुप को अखाड़ा कहा जाने लगा.हर अखाड़ा अपने अलग नियम और कानून के हिसाब से चलता है. अगर किसी साधु ने कोई नियम तोड़ा तो अखाड़ा परिषद उसे सजा भी देता है. छोटी सी गलती पर साधु को गंगा में पांच से 108 डुबकी लगानी पड़ सकती है. उसके बाद भीगे कपड़ों में ही साधु को देवस्थान जाकर अपनी गलती की क्षमा मांगनी पड़ती है. शादी, हत्या या रेप जैसे मामले सामने आने पर साधु को अखाड़े से निकाल दिया जाता है.