राज्यसभा में निलंबन कैसे होता है?
राज्यसभा सांसदों को नियम 256 के तहत निलंबित किया गया है. इस नियम के मुताबिक अगर सभापति जरूरी समझे तो वो उस सदस्य को निलंबित कर सकते है, जो सभापीठ के अधिकार की अवहेलना करें या फिर जो बार-बार जानबूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डाले और राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग करें.
इसी नियम के तहत सभापति सदस्य को राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक सस्पैंड कर सकता है जब तक कि सत्र खत्म नहीं हो जाता या सत्र के कुछ दिनों तक भी ये लागू रह सकता है. इसके तहत निलंबन होते ही राज्यसभा सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होता है.
कुछ इसी तरह से राज्यसभा में नियम 255 के तहत भी निलंबन किया जा सकता है, लेकिन इस नियम के तहत निलंबन सिर्फ उसी दिन के लिए ही लागू रहेगा. उसमें उस दिन के लिए सदस्य को सदन से बाहर रहना होगा.
ये तो हुई राज्य सभा में निंलबन की बात, अब आपको बताते हैं कि
लोकसभा में निलंबन कैसे होता है?
लोक सभा में भी निलंबन करने के लिए एक नियम बनाया गया है. लोकसभा में नियम 373 और 374 के जरिए स्पीकर के पास ये अधिकार होता है. लोकसभा के नियम 373 के मुताबिक - अगर लोकसभा स्पीकर को ऐसा लगता है कि कोई सांसद लगातार सदन की कार्रवाई बाधित करने की कोशिश कर रहा है तो वो उसे उस दिन के लिए सदन से बाहर कर सकता है या फिर बाकी बचे पूरे सेशन के लिए भी सस्पेंड कर सकता है. वहीं नियम 374 के मुताबिक अगर स्पीकर को लगता है कि कोई सदस्य बार-बार सदन की कार्रवाई में रुकावट डाल रहा है तो उसे बाकी बचे सेशन के लिए सस्पेंड कर सकता है
क्या ये निलंबन वापस भी हो सकता है?
निलंबित किए गए सदस्यों का निलंबन वापस भी लिया जा सकता है अगर राज्यसभा के सभापति ऐसा करना चाहे तो. निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर भी इसे वापस लिया जा सकता है. वैसे संस्पेंशन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है. अगर ये पास हो जाए तो निलंबन अपने आप ही हट जाएगा.