निर्वाचन आयोग ने राष्ट्रपति चुनाव की तारीख का ऐलान कर दिया है। 18 जुलाई को देश के 16वें राष्ट्रपति के लिए चुनाव होंगे और 21 जुलाई को देश को नए राष्ट्रपति मिल जाएंगे। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर जानकारी दी है कि। 15 जून को राष्ट्रपति चुनाव को लेकर अधिसूचना जारी होगी। 29 जून नामांकन की आखिरी तारीख होगी। और 18 जुलाई को वोटिंग होगी। 21 जुलाई को काउंटिंग खत्म होने के बाद ही नए राष्ट्रपति के नाम का ऐलान होगा। चुनाव आयोग इस बार पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्रॉफी कराएगा। साथ ही इस बार चुनाव में वोटिंग के लिए विशेष इंक वाला पेन भी मुहैया कराया जाएगा। वोट देने के लिए 1, 2 या 3 लिखकर पसंद बतानी होगी।पहली पसंद ना बताने पर वोट रद्द माना जाएगा। बता दें कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है। इससे पहले ही देश को नए महामहिम मिल जाएंगे। पिछली बार 17 जुलाई 2017 को राष्ट्रपति चुनाव हुए थे।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए पात्रता
राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 साल की उम्र होना जरूरी है… भारत का कोई भी नागरिक कितनी भी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है… लोकसभा सदस्य होने की पात्रता और किसी भी लाभ के पद पर न होने के साथ-साथ उम्मीदवार के पास कम से कम 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक विधायक होने चाहिए।
ऐसे होता है राष्ट्रपति चुनाव
अब बात करें राष्ट्रपति चुनाव के प्रक्रिया की तो बता दें। राष्ट्रपति का चुनाव आम चुनाव जैसा नहीं होता है। इसमें जनता सीधे तौर पर हिस्सा नहीं लेती है, बल्कि जनता ने जिन विधायकों और सांसदों को चुना होता है, वो चुनाव में हिस्सा लेते हैं। विधायक और सांसद के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। अब ये वेटेज कैसे तय होता है ये बाद में बताएंगे। पहले ये जान लीजिए संविधान के अनुच्छेद -54 के मुताबिक, राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचन मंडल करता है। इसके सदस्यों का प्रतिनिधित्व आनुपातिक होता है। यानि उनका सिंगल वोट ट्रांसफर होता है। लेकिन उनकी दूसरी पसंद की भी गिनती होती है।
लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा के सदस्य मिल कर राष्ट्रपति के चुनाव के लिए निर्वाचन मंडल बनाते हैं। मनोनीत सांसदों को छोड़कर बाकी बचे 776 सांसद और विधानसभा के 4120 विधायकों से निर्वाचन मंडल बनता है। निर्वाचन मंडल के वोट का कुल मूल्य 10 लाख 98 हजार 803 है।
वोटिंग में हिस्सा लेने वाले सदस्य उम्मीदवारों में से पहले अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट डालते हैं। बैलट पेपर में सदस्य बता देते हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए उनकी पहली, दूसरी और तीसरी पसंद क्या है। अगर पहली पसंद वाले वोटों से विजेता का फैसला नहीं हो पाता। तो उम्मीदवार के खाते में वोटर की दूसरी पसंद को नए सिंगल वोट की तरह ट्रांसफर किया जाता है। इसी वजह से इसे सिंगल ट्रांसफरेबल वोट कहा जाता है।
विधायकों के वोट का वेटेज राज्य की जनसंख्या और विधानसभा क्षेत्र की संख्या पर डिपेंड करता है। वोट का वेटेज निकलने के लिए प्रदेश की जनसंख्या को चुने गए विधायकों की संख्या से भाग दिया जाता है, इसके बाद जो नंबर आता है, उसे 1 हजार से भाग दिया जाता है। इस तरह यह उस राज्य के विधायक के एक वोट का वेटेज होता है। यदि भाग देने के बाद प्राप्त संख्या 500 से ज्यादा है तो इसमें 1 जोड़ दिया जाता है।
राज्यों की विधानसभाओं के चुने सदस्यों के वोटों का वेटेज जोड़ा जाता है। अब इस वेटेज को राज्यसभा और लोकसभा के चुने सदस्यों की कुल संख्या से भाग दिया जाता है। इस तरह जो नंबर मिलता है, वो एक सांसद के वोट का वेटेज होता है। अगर इस तरह भाग देने पर शेष 0।5 से ज्यादा बचता हो तो वेटेज में एक जोड़ दिया जाता है।
राष्ट्रपति चुनाव में ज्यादा वोट हासिल करने से ही जीत तय नहीं होती है। राष्ट्रपति वही बनता है, जो सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल वेटेज का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करे। मान लीजिए राष्ट्रपति चुनाव के लिए जो निर्वाचन मंडल होता है, उसके सदस्यों के वोटों का कुल वेटेज 10 लाख 98 हजार 882 है। तो उम्मीदवार को 5 लाख 49 हजार 442 वोट हासिल करने होंगे।जो उम्मीदवार सबसे पहले ये नंबर हासिल कर लेता है, उसे राष्ट्रपति चुन लिया जाता है।
संसद के दोनों सदनों (लोकसभा, राज्यसभा) के सदस्य। राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य । राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और संघ शासित प्रदेश पुडुचेरी के विधानसभा के सदस्य वोटिंग प्रक्रिया में शामिल होते हैं। जबकि राज्यसभा, लोकसभा या विधानसभाओं के मनोनीत सदस्यों और राज्यों के विधान परिषदों के सदस्यों को वोटिंग का अधिकार नहीं होता है।
इस बार राष्ट्रपति पद के चुनाव में 776 सांसद और 4033 विधायक, यानी कि कुल 4 हजार 809 मतदाता शामिल होंगे। राजनीतिक दल व्हिप लागू नहीं कर सकेंगे साथ ही मतदान पूरी तरह से गुप्त होगा।