काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में ईदगाह मस्जिद के बाद अब दिल्ली में कुतुब मीनार को लेकर विवाद गहराता जा रहा है… दो हफ्ते पहले हिंदूवादी संगठन के सदस्यों ने कुतुब मीनार परिसर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ किया था और इसका नाम बदलकर विष्णु स्तम्भ करने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था… कुतुब मीनार परिसर में पूजा का अधिकार दिए जाने की मांग को लेकर दिल्ली के साकेत कोर्ट में याचिका लगाई गई जिस पर सुनवाई हुई। कोर्ट में ASI (आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) ने कहा है कि ‘कुतुब मीनार पूजा का स्थान नहीं है और इसकी मौजूदा स्थिति को बदला नहीं जा सकता। कुतुब मीनार को 1914 से संरक्षित स्मारक का दर्जा मिला है। उसकी पहचान बदली नहीं जा सकती और न ही अब वहां पूजा की अनुमति दी जा सकती है।‘
दरअसल हिंदू पक्ष की दलील है कि ‘कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1198 ईसवी में 27 हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिद बनाई थी, जिसके अवशेष वहां मौजूद हैं। इसलिए वहां के मंदिरों को दोबारा बनाए जाए।‘ वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ‘मीनार के मेन गेट के दाईं ओर बनी मुगल कालीन कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में नमाज होती थी जिसे ASI ने बंद करवा दिया है।‘
ASI के पूर्व रीजनल डायरेक्टर धर्मवीर शर्मा ने भी कुतुब मीनार को लेकर बड़ा दावा किया है। उन्होंने कुतुब मीनार को सूर्य स्तंभ यानि वेधशाला बताया है। इनका कहना है ‘इस स्तंभ का निर्माण नक्षत्रों के अध्ययन के लिए किया गया था। जिसका जिक्र देवनागरी भाषा में स्तंभ की तीसरी मंजिल पर मिलता है। धर्मवीर शर्मा का दावा है कि उनके पास तमाम साक्ष्य हैं जो ये साबित कर देंगे कि ये मीनार नहीं बल्कि वेधशाला है।‘
कुतुबमीनार 25 इंच दक्षिण की तरफ झुकी हुई है। इस मीनार को कर्क रेखा से 5 डिग्री उत्तर तरफ बनाया गया है। 21 जून को जब सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन में जाता है तो दोपहर 12 बजे कुतुबमीनार की छाया जमीन पर नहीं पड़ती। इस स्तंभ में 27 आले हैं, जिनमें आँख लगाकर बाहर देखा जा सकता है। इन्हें हम दूरबीन वाले स्थान भी कह सकते हैं। कुतुबमीनार के मुख्य गेट से 25 इंच पीठ झुकाकर ऊपर देखने पर ध्रुव तारा नजर आता है।
धर्मवीर शर्मा का दावा है कि ये वेधशाला विष्णु पद पहाड़ी पर बनाई गई थी। इसका निर्माण वाराहमिहिर की अध्यक्षता में परमार वंश के राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। वेधशाला के ऊपर कोई छत नहीं है। इस वेधशाला का मुख्य द्वार ध्रुव तारे की दिशा की ओर खुलता है। इस मीनार के ऊपर बेल बूटे घंटियाँ आदि बनी हैं, जो हिंदुओं की सभ्यता का प्रतीक है। इसके भीतर देवनागरी में लिखे हुए कई अभिलेख हैं जो 7वीं और 8वीं शताब्दी के हैं। इसे बनाने वालों के इसके ऊपर जो नाम लिखे हैं उनमें एक भी मुस्लिम नहीं था। इसे बनाने वाले सभी हिंदू थे। इस मीनार का इस्तेमाल अजान देने के लिए नहीं किया जा सकता। क्योंकि इससे अंदर की आवाज बाहर की ओर नहीं जाती है। साथ ही इसका निर्माण कई चरणों में होने की बात भी गलत है। इस मीनार के चारों ओर 27 नक्षत्रों के सहायक मंदिर थे जिन्हें तोड़ दिया गया है। इसका मुख्य द्वार छोड़कर सभी द्वार पूर्व की ओर खुलते हैं।
इसके अलावा धर्मवीर शर्मा ने कुतुब मीनार परिसर में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के एक खंभे में लगी मूर्ति की पहचान नरसिंह भगवान और भक्त प्रह्लाद की मूर्ति के रूप में की थी। उनका दावा है कि यह मूर्ति आठवीं-नौवीं सदी में प्रतिहार राजाओं के काल की है।
इस साल अप्रैल में नेशनल म्यूजियम अथॉरिटी ने ASI को कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स से गणेश जी की 2 मूर्तियों को हटाने और नेशनल म्यूजियम में उनके लिए सम्मानजनक जगह खोजने के लिए कहा था। इसके बाद यह विवाद अदालत तक भी पहुंच गया। इस मामले पर कोर्ट ने आदेश दिया कि कोई कार्रवाई नहीं की जाए और मामले की सुनवाई तक कॉम्प्लेक्स से मूर्तियां नहीं हटाई जायें।