बढ़ती महंगाई की वजह से RBI ने एक बार फिर रेपो रेट बढ़ाने का फैसला लिया है। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में आधा फीसदी की बढ़ोतरी की है। अब रेपो रेट 4.4 से बढ़कर 4.9 फीसदी हो गई है। एक महीने के अंतराल में रेपो रेट में ये दूसरी बढ़ोतरी है। बीती 2 मई को भी RBI ने रेपो रेट में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की थी। RBI ने इस कदम के पीछे इन्फ्लेशन यानि महंगाई को जिम्मेदार ठहराया है।RBI गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि फिलहाल इन्फ्लेशन कंट्रोल करने के लिए रेपो रेट बढ़ाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।
बता दें इन्फ्लेशन, जियो पॉलिटिकल टेंशन, कच्चे तेल की कीमत और अन्य खाद्य सामाग्रियों के बढ़ते दामों ने भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है… कच्चे तेल की कीमत अस्थिर है और 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है। रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विदेशों से खाद्य तेलों का आयात नहीं हो पा रहा। जिसके चलते घरेलू बाजारों में खाद्य तेलों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। क्रूड ऑयल के दाम बढ़ने की वजह से भी महंगाई बेकाबू होती जा रही है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2022 में खुदरा महंगाई यानि Retail Inflation की दर 7.8 फीसदी रही थी, जो मई 2014 के बाद सबसे ज्यादा है। इसी तरह अप्रैल 2022 में थोक महंगाई की दर बढ़कर 15.08 फीसदी पर पहुंच गई थी, जो दिसंबर 1998 के बाद सबसे ज्यादा है। अप्रैल के महीने में फूड इंफ्लेशन बढ़कर 8.38 फीसदी पर पहुंच गई थी। इस रिकॉर्ड महंगाई के लिए खाद्य वस्तुओं और पेट्रोलियम के बढ़ते दाम जिम्मेदार थे।
अब बात करें RBI की मौद्रिक नीतियों यानि। रेपो रेट, रिवर्स रेपो, CRR और SLR की तो इसे ऐसे समझिए
रेपो रेट (Repo) : रेपो रेट को आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे RBI से कर्ज लेते हैं… इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे। इसलिए रेपो रेट बढ़ने पर आपकी ईएमआई भी बढ़ जाती है।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo): यह रेपो रेट से उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर RBI उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो कहते हैं। जब भी बाजारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी।
सीआरआर (CRR): बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात CRR कहा जाता है। ये नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके। अगर CRR बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी। यानि आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा। अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।
एसएलआर (SLR) : जिस रेट पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे SLR कहते हैं। नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।