प्रियंका चोपड़ा सरोगेसी तकनीक के जरिए मां बन गयीं हैं. प्रियंका से पहले बॉलीवुड एक्ट्रेस प्रीति जिंटा, शिल्पा शेट्टी, शाहरुख खान, आमिर खान, करण जौहर, एकता कपूर और तुषार कपूर जैसे कई सितारे सरोगेसी की मदद से पैरेंट्स बन चुके हैं तो आज know this के वीडियो में हम आपको आसान भाषा में बताएंगे कि सरोगेसी क्या होती है और भारत में इसके क्या नियम हैं? क्या कोई भी सेरोगेसी से पेरेंट्स बन सकता है? बस आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ...
जब कोई कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी दूसरी महिला की कोख किराए पर लेता है तो इस प्रक्रिया को सरोगेसी कहा जाता है. यानी सरोगेसी में कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए प्रेग्नेंट होती है. इसे ही सरोगेसी कहते हैं. सरोगेसी में कपल्सख में से मेल पार्टनर के स्पिर्म और फीमेल पार्टनर के एग को फर्टिलाइज करके सरोगेट मदर यानि किसी दूसरी महिला की कोख में डाल दिया जाता है. ये पूरी प्रक्रिया भारत में कानूनी तौर पर जायज है.सरोगेसी का ऑप्शन उन महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है जो fertility issues, abortion या जोखिम भरी प्रेगनेंसी के कारण प्रेग्नेंट नहीं हो पातीं.
सरोगेसी 2 तरह की होती है. एक ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी.
ट्रेडिशनल सरोगेसी में सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर होती है. यानी ट्रेडिशनल सरोगेसी में सरोगेट मदर की एग का इस्तेमाल किया जाता है. इस कंडीशन में अगर होने वाले पिता का स्पर्म इस्तेमाल नहीं किया जाता तो किसी डोनर के स्पर्म का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर डोनर के स्पर्म का इस्तेमाल किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से जेनेटिकली रिलेशन नहीं होता है. इसे ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी कहा जाता है. वहीं जेस्टेशनल सरोगेसी में सरोगेट मदर का बच्चे से रिलेशन जेनेटिकली नहीं होता है, यानी प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है. इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है. वो सिर्फ बच्चे को जन्म देती है. जेस्टेशनल सरोगेसी की मेडिकल प्रक्रिया थोड़ी टफ होती है. इसमें आईवीएफ तरीका अपनाकर भ्रूण बनाया जाता है और फिर उसे सरोगेट महिला में ट्रांसफर किया जाता है. भारत में ट्रेडिशनल सरोगेसी को अब तक लीगल नहीं किया गया है. वहीं दूसरी ओर जेस्टेेशनल सरोगेसी को सबसे पहले 1986 में शुरू किया गया था.
बता दें कि पिछले दो साल से कोरोना के बाद आई मंदी और बेरोजगारी की वजह से सरोगेट मदर की संख्या में इजाफा हुआ है. दूसरों के घरों में काम करने वाली महिलाएं सरोगेसी से कम समय में ज्यादा पैसे की चाहत में इसे अपना रहीं हैं. वहीं भारत में इससे जुड़े कानून की बात करें तो भारत में सरोगेसी के दुरुपयोग को रोकने के लिए कई नियम बनाए गए हैं. 2019 में ही कमर्शियल सरोगेसी पर बैन लगाया गया था. जिसके बाद सिर्फ मदद करने के लिए ही सरोगेसी का विकल्प खुला रह गया है. 2019 के नियम के हिसाब से सरोगेसी के लिए सेरोगेट महिला के पास मेडिकल रूप से पूरी तरह फिट होने का सर्टिफिकेट होना चाहिए तभी वो सरोगेट मां बन सकती है. वहीं सरोगेसी का सहारा लेने वाले कपल के पास इस बात का प्रमाण होना चाहिए कि वो मां या पिता बनने के लिए (infertile) अनफिट हैं. जबकि सरोगेसी रेग्युलेशन बिल 2020 में किए कई सुधार किये गए हैं जिसमें सरोगेट मां की उम्र 21 से बढ़ा कर 25 कर दी गई है और अब नए नियम के हिसाब से अल्ट्रस्ट्रिक सेरोगेसी में सेरोगेट मदर सिर्फ कपल की परिचित होनी चाहिए. जो उसके साथ पूरी गर्भावस्था के दौरान रहे. इसके अलावा एक सेरोगेट मां, अपने जीवन में तीन बार सेरोगेट मां बन सकती थी, लेकिन अब नए नियम की वजह से वह सिर्फ 1 बार ही सेरोगेट मां बन सकती है.