महाराष्ट्र में शिवसेना के कद्दावर नेता एकनाथ शिंदे की बगावत की वजह से उद्धव सरकार का जाना तय माना जा रहा है. उद्धव ठाकरे के सामने इतनी विकट स्थिति है कि उन्हें अब सरकार के साथ साथ पार्टी बचाने की भी चुनौती है. शिवसेना के विधायकों के साथ अब सांसदों ने भी बागी रुख अख्तियार कर लिया है. शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस मिलकर इस संकट से निकलने का उपाय ढूंढ रही है लेकिन कोई हल नजर नहीं आ रहा है. सीएम उद्धव ठाकरे की कुर्सी जाने की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर उद्धव ठाकरे से चूक कहां हुई कि आज उन्हें ये दिन देखना पड़ रहा है. उद्धव ठाकरे कि अपनी ही सरकार और पार्टी पर पकड़ कब ढीली पड़ गई और इस पूरे प्रकरण की शुरुआत कहां से हुई.
ढाई साल पहले उद्धव ठाकरे ने एक बड़ा राजनीतिक दांव चलकर महाराष्ट्र की सत्ता हासिल की थी. शरद पवार के साथ मिलकर उन्होंने बीजेपी को पटखनी दी थी और महाविकास अघाड़ी की सरकार बनाई थी. शिवसेना कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन सत्ता हासिल करने के लिए बना एक बेमेल गठबंधन रहा, जिसके बारे में आज बागी विधायक भी खुलकर बोल रहे हैं.
उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व के साथ समझौता किया
शिवसेना के बागी विधायकों का कहना है कि उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व के साथ समझौता कर लिया है. शुरूआत से ही शिवसेना की पहचान उसका उग्र हिंदुत्व रुख रहा है. लेकिन कांग्रेस और एनसीपी के साथ जाने के बाद हिंदुत्व के मुद्दे पर उसने नरम रुख अपनाया. गठबंधन धर्म का पालन करने के लिए ये जरूरी था लेकिन इससे शिवसेना की स्वाभाविक पहचान खतरे में पड़ गई. आज बागी विधायकों की सबसे बड़ी शिकायत यही है. तभी वो कह रहे हैं कि अब भी अगर उद्धव ठाकरे बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना लें तो बिगड़ी बात बन सकती है.
अपने ही विधायकों को मिलने का वक्त नहीं देते उद्धव
बागी विधायकों की एक बड़ी शिकायत है कि उद्धव ठाकरे समय मांगने पर भी मिलने का वक्त नहीं देते. पिछले ढाई साल से विधायक उद्धव ठाकरे की अनदेखी की शिकायत कर रहे हैं. विधायकों का कहना है कि इस वजह से उन्हें अपने क्षेत्र की समस्याओं का ठीक से समाधान भी नहीं हो पा रहा था. इस बारे में सफाई देते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि पहले कोविड और अपनी सर्जरी की वजह से उन्हें थोड़ी दिक्कत आई थी. लेकिन बागी विधायक उनकी इस सफाई से इत्तिफाक नहीं रखते हैं.
आदित्य ठाकरे के साथ एकनाथ शिंदे की खटपट
बाला साहेब ठाकरे के वक्त से ही एकनाथ शिंदे शिवसेना के प्रभावशाली नेता रहे हैं. शिवसेना पर उनकी मजबूत पकड़ रही है. नई सरकार के गठन के वक्त माना जा रहा था कि एकनाथ शिंदे को ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलेगी. लेकिन एनसीपी और कांग्रेस के सुझाव के बाद उद्धव ठाकरे ने खुद सीएम की कमान संभाली. जानकार बताते हैं कि एकनाथ शिंदे को भले ही मंत्री बना दिया गया लेकिन उनके मंत्रालय तक में उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे का दखल रहा. इस बात की चर्चा लगातार रही कि एकनाथ शिंदे के खिलाफ जाकर आदित्य ठाकरे फैसले लेते रहे. इसमें संजय राउत जैसे नेताओं की भी सहमति रहती थी. शिंदे को काफी वक्त से ये बात खटक रही थी.
एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस की दोस्ती ने बदला समीकरण
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ एकनाथ शिंदे की दोस्ती ने भी राजनीतिक समीकरण बदलने का काम किया. फडणवीस के सीएम रहते हुए एकनाथ शिंदे पीडब्ल्यूडी मंत्रालय का कार्यभार संभाल रहे थे. एकनाथ शिंदे के पास कई अहम प्रोजेक्ट्स थे. फडणवीस ने उन्हें फैसले लेने के लिए खुली छूट दे रखी थी. फडणवीस के साथ शिंदे के रिश्ते इतने मजबूत थे कि वो बीजेपी से अलग होने के बाद भी शिवसेना और बीजेपी की बीच की कड़ी बने रहे. महाराष्ट्र में बदले राजनीतिक हालात के लिए इस जोड़ी को ही जिम्मेदार माना जा रहा है.