तमिलनाडु में हुए हेलिकॉप्टर क्रैश में CDS जनरल बिपिन रावत समेत सेना के 13 लोगों की मौत हो गई. हम सभी जानते हैं कि देश के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानि CDS की सुरक्षा काफी सख्त होती है. उनके साथ हमेशा कई कमांडो होते थे. हमेशा वो देश के सबसे फूलप्रूफ विमान से ही सफर करते थे. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर CDS का हैलिकॉप्टर क्रैश कैसे हुआ?
हादसे को लेकर अभी जितने भी कारण बताए जा रहे हैं, वो खराब मौसम और तमाम आशंकाओं को लेकर है. इसकी असल वजह तब सामने आएगी, जब ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर की जांच होगी. वायुसेना ने कहा कि जांच के आदेश दे दिए गए हैं. आज इस वीडियो में हम आपको इस क्रैश को लेकर होने वाली जांच की प्रक्रिया के बारे में सब कुछ बताएंगे.
कौन करता है जांच ?
Flight safety और accident investigation से जुड़े मामले में भारतीय वायु सेना की सर्विस सबसे बेहतर है. इस काम के लिए उनके पास Air Accidents Investigation Board है. किसी भी दुर्घटना की जांच एक independent Court of Inquiry (CoI) द्वारा की जाती है जिसमें अलग अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल होते हैं. एयर कमोडोर या उससे ऊपर के रैंक का एक सिनियर हेलीकॉप्टर पायलट CoI का हेड होता है. किसी भी विमान दुर्घटना होने के चार महीने के अंदर जांच जरूरी होती है.
क्यों जरूरी है ब्लैक बॉक्स?
किसी भी दुर्घटना के बाद ब्लैक बॉक्स का पता लगाना सबसे जरूरी होता है. ब्लैक बॉक्स एक इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग डिवाइस है जिसे दुर्घटनाओं की जांच को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से एक विमान में रखा जाता है. इसमें कई तरह के सिग्नल, बातचीत और तकनीकी डेटा रिकॉर्ड होते रहते हैं.
ब्लैक बॉक्स को Flight recorders के नाम से भी जाना जाता है. यह बक्सा आम तौर पर नारंगी रंग का होता है. ब्लैक बॉक्स इतना मजबूत होता है कि बड़ी से बड़ी टक्कर में भी यह जमीन, आसमान या समंदर की गहराइयों तक में सुरक्षित बचा रह रह सकता है. खारे पानी में भी सालों तक बिना गले-सड़े कायम रह सकता है. यह बीकन बैटरी से चलता है, जो पांच साल तक डिस्चार्ज नहीं होती.