उत्तर प्रदेश के कासगंज से custodial death का एक और मामला सामने आया है. 22 साल के Altaf Raja की कथित तौर पर police custody में मौत हो गई. अल्ताफ को एक नाबालिग लड़की के लापता होने के मामले में पूछताछ के लिए पुलिस स्टेशन बुलाया गया था. पुलिस के मुताबिक अल्ताफ़ ने थाने के शौचालय में खुदकुशी कर ली. इस वीडियो में हम custodial deaths की हर हकीकत को आपके सामने रखेंगे. custodial death क्या होती है. कानून इस बारे में क्या कहता है. भारत में हिरासत में मौत के आंकड़े क्या हैं?
Custodial death क्या है?
custodial death यानी हिरासत में मौत. ये दो प्रकार के होते हैं - पहला पुलिस कस्टडी जहां आरोपी पुलिस थाने में मौजूद लॉकअप में बंद होता है. दूसरा judicial custody जहां आरोपी मजिस्ट्रेट की हिरासत में जेल में रखा जाता है. आपको बता दें कि गिरफ्तारी के 24 घंटे के अंदर पुलिस को आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक साल 2020 से 21 के बीच 1,940 custodial deaths रिपोर्ट की गई थी. इससे पहले साल 2019-20 में ये आंकड़ा 1,696 मौतों का था. वहीं 2018-2019 में हिरासत में 1,933 मौतें हुई. National Human Rights Commission NHRC के मुताबिक इस साल के पहले 5 महीनों में कुल 1,067 लोग custodial deaths के शिकार हुए.
पिछले तीन सालों के आंकड़ों में उत्तर प्रदेश में judicial custody में सबसे ज्यादा 1,295 मौत दर्ज की गई, इसके बाद मध्य प्रदेश में 441, पश्चिम बंगाल में 407 और बिहार में 375 लोगों की मौत हुई. वहीं police custody में सबसे ज्यादा- 42 मौत गुजरात में दर्ज की गई, इसके बाद मध्य प्रदेश में 34, महाराष्ट्र में 27 और उत्तर प्रदेश में ये आंकड़ा 23 का रहा.
क्या है हिरासत में मौत की वजह?
2020 में पुलिस हिरासत में मरने वाले 76 में से 34 लोगों की मौत बीमारी से या अस्पतालों में इलाज के दौरान हुई. 31 लोगों की मौत आत्महत्या से हुई. पुलिस हिरासत से पहले लगी चोटों से 2 लोगों की मौत हुई. हिरासत के दौरान लगी चोटों से मौत का एक मामला सामने आया. हिरासत से भागने की कोशिश में 3 लोगों की मौत हुई, जबकि 5 की मौत अन्य कारणों से हुई. विशेषज्ञों का मानना है कि पुलिस हिरासत में हुई मौत के बढ़ते मामलों की वजह जानने के लिए अनिवार्य रूप से judicial inquiries होना चाहिए. लेकिन हर मामले में ऐसा नहीं किया जाता.
क्या कहता है कानून?
कानून के मुताबिक हिरासत में हुई हर एक मौत की व्यक्तिगत रूप से जांच होनी चाहिए. 2005 तक Code Of Criminal की धारा 176 में पुलिस हिरासत में हर मौत की enquiry के लिए एक executive magistrate की जरूरत होती थी. इसके बाद साल 2005 में इसमें संशोधन किया गया जिसके बाद judicial या metropolitan magistrate द्वारा enquiry को भी अनिवार्य कर दिया गया.