पूरी दुनिया में कई सरकारें और प्राइवेट कंपनियां मिलकर कच्चे तेल का एक भंडार अपने पास रखती हैं. अगर कभी कोई बहुत बड़ा बिजली संकट आ जाए या तेल की सप्लाई में कोई बड़ी रुकावट आ जाए तो उससे निपटने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. आसान भाषा में कहें तो ये इमरजेंसी कंडीशन में देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए कच्चे तेल का स्टॉक है, युद्ध या किसी और वजह से कच्चे तेल की आपूर्ति पर असर होने पर भी इन रिजर्व में से देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया जाता है. इसके अलावा इन रिजर्व्स का इस्तेमाल तेल की कीमतों को कंट्रोल करने के लिए भी किया जाता है.बता दें कि अमेरिका, चीन, जापान, भारत, यूके समेत दुनिया भर के कई देश ऐसा भंडार रखते हैं. 1973 के तेल संकट के बाद भविष्य में इस तरह के संकटों से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी नाम की एक संस्था बनाई गई थी. इसके 30 सदस्य हैं और आठ सहयोगी सदस्य. सभी सदस्य देशों के लिए कम से कम 90 दिनों का तेल का भंडार रखना जरूरी है. भारत अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का सहयोगी सदस्य है.
विशाखापट्टनम, मंगलौर और उडुपी के पास पादुर में भारत ने फर्स्ट फेज के तहत स्ट्रैटजिक रिजर्व बनाए थे. इन तीनों रिजर्व में 50 लाख मीट्रिक टन कच्चा तेल स्टोर किया जा सकता है.