भारत सिर्फ वायु प्रदूषण के मामले में ही नहीं बल्कि ध्वनि प्रदूषण में भी काफी आगे है. दुनिया के सबसे शोरगुल वाले शहरों की लिस्ट में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद का नाम दूसरे नंबर है. इस लिस्ट में 61 शहरों का नाम हैं जिसमें कोलकाता, आसनसोल, जयपुर, दिल्ली का नाम भी शामिल है. आज नो दिस के इस वीडियो में हम आपको संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के बारे में सब कुछ बताएंगे. साथ ही जानेंगे कि भारत में ध्वनि प्रदूषण में क्या स्थिति है... इस रिपोर्ट को लेकर क्या विवाद चल रहा है.... ध्वनि प्रदूषण का स्तर कैसे चेक किया जाता है? इन तमाम सावलों के जवाब के लिए वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक मुरादाबाद दुनिया का दूसरा सबसे ज्यादा शोर वाला शहर है. मुरादाबाद में 114 डेसिबल ध्वनि प्रदूषण दर्ज किया गया है. WHO की गाइडलाइन के मुताबिक, ध्वनि प्रदूषण का स्तर 53 डीबी यानी डेसिबल तक ही होना चाहिए. ध्वनि प्रदूषण के मामले में दुनिया में पहले नंबर पर बांग्लादेश की राजधानी ढाका है. यहां 119 डेसिबल प्रदूषण है. वहीं तीसरे स्थान पर पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद है.
बता दें रिपोर्ट जारी होने के बाद नया विवाद पैदा हो गया. मुरादाबाद प्रशासन को UNEP की इस रिपोर्ट से ऐतराज है. HT की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण को लेकर संयुक्त राष्ट्र ने जो रिपोर्ट जारी की है वो गलत है. अधिकारियों ने इसकी वजह भी बताई है. मुरादाबाद पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी का कहना है कि यह रिपोर्ट गलत है. संयुक्त राष्ट्र की ओर से शहर में कोई भी सेंसर नहीं लगाए गए हैं जो यह जांच सकें कि यहां कितना ध्वनि प्रदूषण है. इतना ही नहीं, हमें इसकी मॉनिटरिंग से जुड़ी कोई जानकारी नहीं मिली है.
आइए जानते हैं कि शहर का ध्वनि प्रदूषण कैसे जांचते हैं. किसी भी शहर के ध्वनि प्रदूषण को जांचने के लिए नॉइज डोसीमीटर का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें माइक्रोफोन लगा होता है जो शहर के शोर को रिकॉर्ड करता है. इसके साथ इस डिवाइस की स्क्रीन पर यह दिख जाता है कि ध्वनि प्रदूषण का स्तर क्या है. कुछ देशों में ध्वनि प्रदूषण का पता लगाने के लिए सेंसर्स का इस्तेमाल किया जाता है. इसे शहर के अलग-अलग इलाकों में लगाया जाता है जो शोर को ट्रैक करते रहते हैं.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण प्रोग्राम की रिपोर्ट बताती है कि कैसे ध्वनि प्रदूषण लम्बे समय के अंतराल पर इंसान के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर छोड़ता है. रिपोर्ट में शहर के हालात को देखकर इसे कंट्रोल करने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं. बताया गया है कि शहरों में ध्वनि प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह होती है ट्रैफिक. WHO के मुताबिक दिन के समय औसतन शोर का स्तर 53 डेसिबल से ज्यादा नहीं होना चाहिए लेकिन संयुक्त राष्ट्र की लिस्ट में टॉप 10 में शामिल शहरों में ध्वनि प्रदूषण का स्तर इससे दोगुना है जो कि चिंता का विषय है.