रूस और यूक्रेन के बीच जंग शुरू हुए लगभग 50 का समय हो चला है और जिस तरह के हालात बन रहे हैं ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ये जंग अपने और बुरे में सबके सामने आ सकती है. यूक्रेन पर हमला करने पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस पर कई सारे प्रतिबंध लगा दिए हैं. इन प्रतिबंधों का भारत और रूस के बीच हुए रक्षा समझौतों पर भी असर पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है. जिसके चलते भारत को आने वाले वक़्त में रूसी हथियारों की खरीददारी को लेकर दिक्कतें बढ़ गयी हैं. तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि कैसे यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से रूसी हथियारों के सबसे बड़े खरीददार भारत की दिक्कतें बढ़ गई हैं साथ ही बताएंगे कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद क्या भारत को हथियारों की खरीदी के लिए किसी और विकल्प को चुनना होगा? बस आप वीडियो एख आखिर तक बने रहिये हमारे साथ.
दरअसल वॉर ऑन द रॉक्स के लिए वसबजीत बनर्जी और बेंजामिन त्काच ने एक रिपोर्ट लिखी है.. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि रूस के रक्षा उद्योग में चीन की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए भारत की सिरदर्दी बढ़ सकती है. ऐसे हालात में भारत अपने हथियारों की खरीद में विविधता लाना शुरू कर सकता है। इसके साथ ही भारत घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी करना शुरू करेगा और अपने स्वदेशी रक्षा उद्योग को विकसित करने की राह पर आगे बढ़ेगा.
जब 1991 में सोवियत संघ का विघटन हुआ तो उसके मॉस्को को हथियारों की सप्लाई पूरा करने में दिक्कतें आई. वारसॉ पैक्ट देश जब नाटो में शामिल हो गए तो इससे रूस को और नुकसान पहुंचा.. इसके बाद बदले हालात को देखते हुए भारत ने आयात में विविधता और देशी हथियारों के विकास पर फोकस बढ़ गया. लेकिन मौजूदा वक्त में जहां भारत रक्षा निर्यात के लिए रूस का टॉप ग्राहक बना हुआ है, वहीं रूस रक्षा आयात के लिए चीन का सबसे बड़ा स्रोत भी बन गया है..
बता दें कि 2014 के बाद रूसी हथियार खरीदने वाले देशों को भी प्रतिबंधों की धमकी दी गई जिसके कारण मॉस्को की दिक्कतें और बढ़ गई। ऐसे में रूस ने भारत के साथ रुपया-रूबल व्यवस्था को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जो अब स्विफ्ट प्रतिबंधों को बायपास करने में मदद करेगा।
वहीं इस पूरे मसले पर भारत की दुविधा की बात करें तो एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के पास चार प्रमुख ऑप्शन हैं। पहला ये कि रूसी हथियारों पर प्रमुख तौर पर निर्भर रहे. दूसरा ये कि वैकल्पिक व्यवस्था की तलाश करे और विविधता लाए और तीसरा ये कि स्वदेशी उत्पादन पर जोर दे। इसके साथ ही भारत इन तीनों ऑप्शन को साथ लेकर भी चल सकता है.. भारत की दीर्घकालिक नीतियों के बावजूद नई दिल्ली को मॉस्को से हथियार, स्पेयर पार्ट्स आदि में तत्काल दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में भारत रूस पर अपनी तत्काल निर्भरता को कम करने के लिए स्पेयर पार्ट्स के लिए नए आपूर्तिकर्ता की तलाश कर सकता है। भारत को ऐसे वेंडर भी मिल सकते हैं जिनके पास सोवियत और रूसी प्रणालियों के साथ काम करने का अनुभव है। ऐसे में एक विकल्प इजरायल भी हो सकता है। इसके अलावा रूस के साथ चीन के संबंधों से भारत को एक और खतरा है.
यदि आने वाले वक्त में रूस चीन पर अधिक निर्भर होता है तो चीन अधिक रूसी हथियार आयात कर सकता है। इसके साथ ही चीन रूसी रक्षा निर्माण फर्मों में हिस्सेदारी भी हासिल कर सकता है। रूस के जरिए चीन भारत की निर्यात क्षमता को भी सीमित कर सकता है। यूक्रेन युद्ध के बाद रूस यदि चीन की ओर झुकता है तो भारत की दिक्कतें और बढ़ सकती हैं।