यमुनोत्री से इलाहाबाद तक यमुना नदी को नापा जाए तो ये करीब 1,370 किलोमीटर तक लंबा है. वहीं दिल्ली के वजीराबाद और ओखला के बीच 22 किलोमीटर का हिस्सा यमुना की कुल लंबाई के 2 प्रतिशत से भी कम है. लेकिन नदी का ये 22 किमी का हिस्सा पूरी नदी के 80 प्रतिशत प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के untreated सीवेज में मौजूद फॉस्फेट और सर्फैक्टेंट की वजह से ही यमुना नदी में झाग बनते हैं. इसके अलावा दिल्ली की unauthorized colonies से आने वाला गंदा पानी, कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से निकलने वाला पानी भी इसके लिए जिम्मेदार है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मानना है कि शहर में लगभग 90 फीसदी से ज्यादा घरों से बेकार पानी यमुना नदी में बहाया जाता है. इसके अलावा दिल्ली का लगभग 58 प्रतिशत कचरा भी यमुना नदी में ही गिरता है. इन सब के बाद करीब 800 मिलियन लीटर से ज्यादा अनट्रीटेड सीवेज हर दिन यमुना में छोड़ा जाता है. सीवर के पानी में फॉस्फेट और एसिड होते हैं. जिसकी वजह से नदी में झाग का निर्माण होता है. नदी का ये जहरीला झाग सेहत के लिए बेहद हानिकारक माना जाता है. झाग वाले पानी के संपर्क में आने से स्किन में खुजली और एलर्जी की शिकायत होती है.