कश्मीर में यूपी-बिहार के मजदूरों की टारगेट किलिंग ने पूरे देश को सकते में डाल दिया है. बीते रविवार कश्मीर में 3 बिहारी मजदूरों को गोली मार दी गई. प्रवासी मजदूर अपनी जान बचाने के लिए घाटी छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. और इसके साथ ही मजदूरों के पलायन का मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में पलायन करने वाली कुल आबादी में 13% लोग अकेले बिहार से आते हैं. इस वीडियो में हम जानेंगे कि बिहार की जनता दूसरे राज्यों में पलायन के लिए क्यों मजबूर हैं? इसकी वजह क्या है? बिहार के मौजूदा आर्थिक हालात कैसे हैं? शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के मामले में बिहार कहां खड़ा है? पलायन की इस पूरी पड़ताल को देखने के लिए बने रहिए हमारे साथ.
सबसे पहले आपको बताते हैं कि
पलायन की वजह क्या है?
बिहार से पलायन की सबसे बड़ी वजह है राज्य में रोजगार की कमी. आंकड़ों के मुताबिक आधे से ज्यादा लोग बेरोजगारी की वजह से बिहार से दूसरे राज्यों में पलायन कर रहे हैं. 2011 सेंसस रिपोर्ट के मुताबिक 55 फीसदी लोगों ने रोजगार की तलाश में बिहार छोड़ा. इसके अलावा 6 फीसदी लोगों ने पढ़ाई और कारोबार के लिए दूसरे राज्यों का रुख किया. जबकि 20 प्रतिशत लोगों ने परिवार के साथ रहने के लिए पलायन किया.
बिहार इकोनॉमिक सर्वे बताता है कि राज्य की फैक्ट्रियों में काम करने वाले वर्कर हर साल सिर्फ 1.29 लाख रुपये कमाते हैं. जबकि झारखंड में उन्हें 3.44 लाख रुपये मिलते हैं. जहां बिहार की एक फैक्ट्री औसतन 40 लोगों को रोजगार देती है, हरियाणा में एक फैक्ट्री से औसतन 120 लोगों को रोजगार मिलता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2011 के बीच बिहार से लगभग 93 लाख लोगों ने दूसरे राज्यों में पलायन किया. इससे पहले 1951 से लेकर 1961 तक सिर्फ 4% लोगों ने पलायन किया था. इतनी बड़ी संख्या में पलायन के पीछे कई और बड़ी वजहें भी शामिल हैं जैसे कि राज्य के आर्थिक हालात, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं की स्थिति.
क्या है स्वास्थ्य-शिक्षा का हाल?
2011 census के मुताबिक, बिहार में साक्षरता दर यानी कि Literacy रेट 61.80 है - जो कि देश में सबसे कम है. प्राइमरी स्कूलों में एडिमशन का अनुपात 100% है, लेकिन सेंकडरी स्कूल तक आते-आते ये संख्या घटकर 47% रह जाती है. स्वास्थ्य सुविधाओं का ये हाल है कि बिहार में सिर्फ 57 प्रतिशत बच्चों की डिलीवरी अस्पतालों में होती है. बताया जाता है कि राज्य के जिला अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के आधे से ज्यादा पद खाली हैं.