कैसे कोयले से बिजली बनाई जाती है?
सबसे पहले कोयले की खदानों से आने वाले कोयले के छोटे-छोटे टुकड़ों को बारीक कर पाउडर की फॉर्म में पीसा जाता है.
इसके बाद इस कोयले का इस्तेमाल बॉयलर में पानी को गर्म करने के लिए किया जाता है जिससे हाई-प्रेशर स्टीम बनाई जाती है.
ये स्टीम टर्बाइन के ब्लेड को घुमाने के लिए इस्तेमाल की जाती है
ये टर्बाइन भी पानी के टर्बाइन जैसे ही होते है लेकिन इन्हें घुमाने के लिए स्टीम का इस्तेमाल किया जाता है.
घुमाए जा रहे टर्बाइन को जनरेटर से कनेक्ट करके मेग्नेटिक फील्ड प्रोड्यूस की जाती है, और इसी से बिजली बनाई जाती है
चलिए अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि अगर भारत में कोयला बड़ी मात्रा में पाया जाता है तो फिर उसे बाहर से कोयला मंगाने की जरूरत क्यों पड़ती है
भारत को बाहर से कोयला क्यों मंगाना पड़ता है?
भारत दुनिया के सबसे बड़े कोयला भंडार वाले देशों में से एक है. लेकिन फिर भी खपत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है. दरअसल ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि भारत में प्रोड्यूस हो रहे कोयले की क्वालिटी वैसी नहीं होती जैसी होनी चाहिए. जिन देशों से भारत कोयला आयात करता है उनमें इंडोनेशिया, australia और अमेरिका जैसे देश शामिल है. भारत के कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू दरअसल कम होती है. इसको समझिए कि एक किलो कोयले को जलाने पर जितनी एनर्जी पैदा होती है उसे कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू कहा जाता है यानि कैलोरिफिक वैल्यू जितनी ज्यादा होगी, कोयले की क्वालिटी भी उतनी ही बढ़िया होगी
भारत में मिलने वाले कोयले की कैलोरिफिक वैल्यू करीब 4000 Kilo Calories per Kg होती है यानि एक किलो कोयले को जलाने पर करीब 4000 Kilo Calories एनर्जी मिलती है, वहीं इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका में मिलने वाले कोयले से 5 से 6 हजार Kilo Calories एनर्जी मिलती है.
भारत में आए इस कोयला संकट के पीछे का कारणों में से एक बाहर से आने वाले कोयले में आई कमी भी है लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है, चलिए आपको बताते हैं