ज्ञानवापी मस्जिद मामले की वाराणसी कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उधर मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। मुस्लिम पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद में हुए सर्वे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। मस्जिद कमेटी की तरफ से दाखिल की गई याचिका में ‘Places OF Worship Act’ को आधार बनाया है।कहा जा रहा है कि मुस्लिम पक्ष का पूरा मामला ही इस कानून पर टिका है। वहीं बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस कानून के औचित्य पर ही सवाल उठा दिए हैं और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
बात करें Places of Worship Act यानि पूजास्थल से जुड़े विशेष अधिनियम के बारे में तो ये कानून 1991 में अस्तित्व में आया। 1990 के दौर में जब अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन तेज हुआ तो केंद्र सरकार को लगा कि देशभर में अलग-अलग धार्मिक स्थलों को लेकर विवाद बढ़ सकता है। जिसकी वजह से हालात बेहद गंभीर हो जाएंगे।तो ऐसे में तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार 11 जुलाई 1991 को ‘Places of Worship Act’ लेकर आई। इस कानून के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को देशभर में जो भी धार्मिक स्थल जिस स्थिति में थे या जिस भी समुदाय का था। भविष्य में भी उसी का रहेगा। चूंकि अयोध्या का मामला उस वक्त हाईकोर्ट में था। इसलिए उस मामले को इस कानून से अलग रखा गया था।इस कानून के तहत अगर कोई शख्स किसी धार्मिक स्थल को बदलने की कोशिश करता है तो उसे 3 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।
ऐसा नहीं है कि इस कानून का विरोध पहली बार हो रहा है।1991 में जब कांग्रेस सरकार ये कानून संसद में लेकर आई तब बीजेपी ने इसका विरोध किया था।उस वक्त इस कानून को JPC यानि संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजने की मांग की थी।लेकिन बावजूद इसके ये कानून पास हो गया।
नवंबर 2019 में राम मंदिर विवाद ख़त्म होने के बाद काशी और मथुरा समेत देशभर के करीब 100 मंदिरों की जमीनों को लेकर दावेदारी की बात उठने लगी। लेकिन इस कानून की वजह से दावेदारी करने वाले लोग अदालत का रास्ता नहीं चुन सकते। जिसके चलते ये विवाद और बढ़ता चला गया।
अब सवाल उठता है कि जब धर्मस्थल की दावेदारी को लेकर कोर्ट नहीं जा सकते तो याचिका कैसे लगा दी गई?
तो आपको बता दें याचिका किसी धर्मस्थल की दावेदारी को लेकर नहीं लगाई गई। बल्कि याचिका में इस कानून की वैधानिकता को चुनौती दी गई है।बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय ने इस एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।याचिका में कहा गया है कि Places of Worship Act। हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध संप्रदायों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करता है। ये कानून विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा 1192 से लेकर 1947 के बीच तोड़े गए ।।धार्मिक और तीर्थस्थलों को फिर से बनाने के कानूनी रास्ते को बंद करता है। याचिका में इस कानून की धारा 2, 3 और 4 को रद्द करने की मांग की गई है। इस एक्ट का सेक्शन-4 का सब सेक्शन-3 कहता है कि जो प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल हैं उन पर ये कानून लागू नहीं होगा। यहां प्राचीन और ऐतिहासिक स्थल वो हैं जो 100 साल से या उससे ज्यादा पुराने हैं।इस हिसाब से कानून के कुछ जानकारों का मानना है कि काशी और मथुरा के मंदिर इस कानून से बाहर हो जाते हैं। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की दलील है कि ये कानून संविधान के समानता के अधिकार, गरिमा के साथ जीवन के अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में दखल देता है इसलिए इस पर रोक लगानी चाहिए…
अब बात करें ज्ञानवापी मस्जिद केस की तो। दावा किया जाता है कि 1669 में काशी में विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर ज्ञानवापी मस्जिद के अलावा बिन्दुमाधव मंदिर को तोड़कर औरंगजेब ने आलमगीर मस्जिद बनवाई थी।।
अब अगर सुप्रीम कोर्ट में Places of Worship Act 1991 में Ancient sites की परिभाषा साबित हो जाती है तो काशी और मथुरा इस कानून के दायरे बाहर हो सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो देशभर में 100 से ज़्यादा ऐसे धार्मिक स्थान हैं जिन्हें लेकर ये तथ्य रखे जाते हैं कि इन्हें औरंगजेब के शासन के दौरान तोड़ा गया था और अब इन्हें मूल स्वरूप में फिर से लौटाया जाए।