आज साल 2022 का पहला चंद्र ग्रहण शुरू हो चुका है। यह चंद्र ग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा। दुनिया के कई हिस्सों में इस ग्रहण को देखा जा रहा है। भारतीय समय के अनुसार चंद्र ग्रहण 16 मई की सुबह 8 बजकर 58 मिनट से आरंभ हो गया है। भारत में इस चंद्र ग्रहण को नहीं देखा जा सकेगा जिस कारण से इसका सूतक काल मान्य नहीं होगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार चंद्र ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तब पृथ्वी का छाया चंद्रमा पर पड़ती तो इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं। आज के know थिस वीडियो में हम आपको बताएंगे की 16 मई यानी आज लगने वाला चंद्र ग्रहण से जुड़ी हर जानकारी देंगे बस आप वीडियो एक आखिर तक बने रहिये हमारे साथ.
बता दें कि आज लगने वाला चंद्र ग्रहण अंटार्कटिका, अटलांटिक, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, दक्षिणी और पश्चिमी एशिया, दक्षिण और पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका के अधिकांश हिस्सों, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका में दिखाई देगा. ये ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा.
जैसा कि हमने आपको बताया कि भारत में ये ग्रहण नहीं देखा जा सका, इसलिए इसका सूतक काल भी मान्य नहीं होगा. जानकारी के लिए बता दें कि अगर ग्रहण भारत में भी दिखाई देता है तो सूतक काल 9 घंटे पहले से शुरू हो जाता है. धर्मिक मान्यताओं के मुताबिक सूतक के नियम होते हैं, जिनका पालन करना चाहिए।।
चंद्र ग्रहण कब और कैसे लगता है जब सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो चंद्र ग्रहण की घटना होती है. इस स्थिति में पृथ्वी की छाया चंद्रमा की रोशनी को ढक लेती है. जब सूर्य की रोशनी पृथ्वी के किनारों से होकर चांद तक पहुंचती है तो इसका नीला और हरा रंग वातावरण में बिखर जाता है, क्योंकि इनकी वेवलेंथ कम होती है. जबकि लाल रंग की वेवलेंथ ज्यादा होती है और वो चंद्रमा तक पहुंच पाता है. ऐसे में चंद्रमा लाल रंग का दिखाई देने लगता है. इसे ब्लड मून कहते हैं..
इसके अलावा अगर चंद्र ग्रहण से जुड़ी धार्मिक मान्यता की बात करें तो समुद्र मंथन के दौरान जब देवों और दानवों में विवाद हुआ था तो इसको हल करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर लिया था। उन्होने देवता और असुरों को अलग अलग बैठा दिया था। लेकिन धोखे से राहु ने अमृत चख लिया था। तब चंद्रमा और सूर्य ने ये बात विष्णु को बताई और विष्णु ने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया था। परन्तु अमृत चखने की वजह से वह मरा नहीं। और उसका सिर वाला भाग राहु और धड़ वाला भाग केतु के नाम से जाना गया। इसी वजह से राहु और केतु सूर्य और चंद्रमा को अपना शत्रु मानते हैं और पूर्णिमा के दिन चंद्रमा को ढक लेते हैं। इसलिए चंद्रग्रहण होता है।