दरअसल आप अपने फोन पर जिन ऐप्स के साथ टाइम स्पेंड करते हैं उनके पीछे बिजनेस की एक बहुत बड़ी दुनिया है. जिसे Smartest engineers, designers और businessmen ने मिलकर बनाया है. इनका मकसद सिर्फ एक है – आपको ज्यादा से ज्यादा समय तक इन ऐप्स से उलझाए रखना. आपकी अटेंशन ग्रैब करना. क्योंकि इससे उनकी इकॉनोमी बनती है. और इसे कहते हैं अटेंशन इकोनॉमी.
आइए समझते हैं कि ये अटेंशन इकोनॉमी क्या है?
कहते हैं if you are not paying for the product then you are the product. मतलब स्मार्टफोन के ऐप्स पर अपना time बिताते वक्त आप सोचते जरूर हैं कि इसके लिए आपको कोई पैसे नहीं देने पड़ रहे. लेकिन हकीकत तो यह है कि आप इन ऐप्स के कस्टमर नहीं बल्कि प्रोडक्ट हैं. ऐप कंपनियों में आपके अटेंशन के लिए होड़ मची है. क्योंकि आपकी अटेंशन ही वो प्रोडक्ट है जिसे ये कंपनियां एडर्वटाइजर्स को बेचती है. आप सोचते होंगे कि गूगल महज एक सर्च इंजिन है या इंस्टाग्राम सिर्फ फोटो अपलोड करने की जगह है. लेकिन असलियत में यह अटेंशन इकोनॉमी के प्लैटफॉर्म हैं. नेटफ्लिक्स के सीईओ कहते हैं कि उनकी लड़ाई यूजर्स की नींद से है - यानि वो आपके अटेंशन के लिए आपको जगाए रखना चाहते हैं. इसके लिए ऐप कंपनियां कई तरह के ट्रिक अपनाती हैं.