पोलियो, रेबीज और इन्फ्लुएंजा जैसी तमाम बीमारियों की वैक्सीन बनाने में एक तकनीक दशकों से इस्तेमाल हो रही है – जिसका नाम है वायरस कल्चर. इसमें लैब में वायरस को विकसित किया जाता है. वैज्ञानिक ऐसे nutrients का इस्तेमाल करते हैं जिससे वायरस तेजी से बढ़ते हैं. आम तौर पर यह nutrients घोड़े, गाय, बकरी या भेड़ जैसे जानवरों के tissues से निकाले जाते हैं. फिर वायरस के तैयार होते ही एक chemical process के जरिए उसका प्यूरिफिकेशन किया जाता है. ताकि वायरस के अंदर एनिमल सीरम रहने की कोई संभावना ना रह जाए.
अब सवाल ये है क्या सीरम के लिए जानवरों की हत्या होती है?
इसका जवाब है नहीं. किसी जमाने में ऐसा होता था. लेकिन अब दुनिया में कहीं भी ऐसा नहीं किया जाता. नई-नई तकनीक सामने आने के बाद जानवरों को किसी तरह का नुकसान नहीं पाया जाता. यानी कि अब अगर नवजात बछड़े का सीरम चाहिए तो उसके जन्म के 3 से 10 दिनों के अंदर सहज प्रक्रिया से उसके शरीर से सीरम निकाल लिया जाता है. उसकी मात्रा भी तय होती है. ताकि बछड़े को किसी तरह की परेशानी ना हो. पिछले दिनों कांग्रेस के एक नेता ने इस मुद्दे को उछाल कर केंद्र सरकार को घेरने की पूरी कोशिश की. जब सोशल मीडिया पर हंगामा बढ़ गया तो केन्द्र सरकार ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर पूरे मामले पर तस्वीर साफ कर दी