अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश लगातार विकास की राह पर बढ़ता जा रहा है. इस कड़ी में बड़ा कदम उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अंतरिक्ष संघ यानि Indian Space Association की स्थापना कर दी है. पीएम ने बताया कि इस Association में भारतीय कंपनियों के साथ कई विदेशी कंपनियां भी शामिल हैं. भारतीय अंतरिक्ष संघ की लॉन्चिंग से अंतरिक्ष क्षेत्र में क्या बदलाव होंगे? इसकी शुरुआत की वजह क्या है? कौन-कौन सी कंपनियां इंडियन स्पेस एसोसिएशन में शामिल हैं. और इससे हमें क्या फायदा होगा?
भारत में स्पेस सेक्टर और स्पेस टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं. भारतीय अंतरिक्ष संघ इन्हीं बदलावों की एक कड़ी है. Indian Space Association या ISpA भारत में space technology को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई एक private industry body है. ISpA space technology और डोमेन से जुड़ी पॉलिसी पर इसरो और अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करेगा. ISpA के founding members में वनवेब, भारती एयरटेल, ISRO, लार्सन एंड टुब्रो और अनंत टेक्नोलॉजी लिमिटेड जैसी कंपनीज़ शामिल हैं.
ISpA का मकसद क्या है?
प्रधानमंत्री ने बताया कि इंडियन स्पेस एसोसिएशन की स्थापना के चार मुख्य मकसद हैं. पहला मकसद है innovation के लिए प्राइवेट सेक्टर को स्वतंत्रता देना. दूसरा एक प्रवर्तक के रूप में सरकार की भूमिका सुनिश्चित करना. तीसरा युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करना और चौथा स्पेस सेक्टर का विकास आम नागरिकों के साधन के रूप में करना.
ISpA से क्या फायदा होगा ?
पिछले कुछ सालों में भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने स्पेस सेक्टर में अभूतपूर्व कामयाबियां हासिल की हैं. अमेरिका के NASA की तरह अब ग्लोबल और डॉमेस्टिक लेवल पर कई प्राइवेट कंपनियों ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में रुचि ली है. इसकी सबसे बड़ी वजह है space-based communication networks. जिस पर कई भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों ने दांव लगाया है.
जैसे कि वनवेब - 648 लो-अर्थ ऑर्बिट satellites के नेटवर्क पर काम कर रहा है. 2022 के अंत तक वनवेब भारत और बाकी दुनिया में अपनी high-speed, low latency connectivity services प्रोवाइड करेगा. इसके अलावा, स्टारलिंक और अमेजॉन भी भारत सरकार के साथ satellite-based internet services की लाइसेंस के लिए चर्चा कर रहे हैं. स्पेसएक्स की 12,000 satellites का एक नेटवर्क बनाने की योजना है.
Experts का मानना है कि दूरदराज क्षेत्रों और कम आबादी वाली जगहों में जहां नेटवर्क नहीं पहुंचता, वहां सैटेलाइट इंटरनेट जरूरी होगा. अब तक satellite communications का इस्तेमाल सिर्फ कुछ कॉरपोरेट्स और संस्थान ही करते हैं. इस साल अगस्त तक, भारत में केवल 3 लाख satellite communications customers थे, जबकि अमेरिका में ये आंकड़ा 45 लाख और European Union में 21 लाख का है. हालांकि इन सबके बीच orbital space में भीड़ बढ़ने की चिंता भी जताई जा रही है.