सबसे पहले आपको बताते हैं कि
ग्लोबल वार्मिंग का खतरा क्या है?
1880 के दशक में औद्योगीकरण की शुरुआत के बाद धरती पर जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. ऊर्जा के लिए आज हम पूरी तरह कोयला, तेल और गैस पर निर्भर हैं. हमारे घरों के हर अप्लायंस के लिए जरूरी बिजली जिन पावर प्लांट में बनती हैं - वो ज्यादातर कोयला, तेल या गैस पर ही चलते हैं. ट्रैवल के लिए हम जिन कार, बस, ट्रेन, प्लेन और शिप का इस्तेमाल करते हैं. उन्हें चलाने के लिए भी फॉसिल फ्यूअल्स की जरूरत पड़ती है.
अब मुश्किल यह है कि इन फॉसिल फ्यूअल्स के इस्तेमाल से बनने वाली गैस की मात्रा बढ़ने से हमारी जलवायु का तापमान बढ़ने लगा है. पिछले 150 सालों में ग्लोबल टेम्परेचर 1.2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इस पर काबू नहीं पाया गया तो अंजाम बेहद खतरनाक हो सकते हैं.
किन गैसों की वजह से होती है ग्लोबल वार्मिंग?
फॉसिल्स फ्यूअल्स के जलने से हवा में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, हाइड्रोफ्लूरोकार्बन और क्लोरोफ्लूरोकार्बन जैसे गैस रिलीज होते हैं. जिन्हें ग्रीनहाउस गैस भी कहते हैं. वैसे तो इन गैस की वजह से ही हमारी धरती वॉर्म बनी रहती है. लेकिन इनकी मात्रा बढ़ते ही संतुलन बिगड़ने लगा है. अब जैसे-जैसे ग्लोबल टेम्परेचर में इजाफा हो रहा है धरती पर विनाश का खतरा भी बढ़ने लगा है.