रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला कर दिया था और उसी दिन से यहां युद्ध जारी है. हाल ही में राष्ट्रपति वलोदोमिर जेलेंस्की ने नाटो से यूक्रेन को नो-फ्लाई जोन घोषित करने की मांग करने की थी लोकिन नाटो ने इसे सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसा करने से यूरोप में रूस के साथ बड़े पैमाने पर जंग शुरू हो सकती है. वहीं जेलेंस्की इस बात कर भड़के हुए हैं... उन्होंने कहा कि यूक्रेन में नो-फ्लाई जोन न लागू करके NATO रूस को खुली छूट दे रहा है कि वह यूक्रेनी शहरों और गावों पर बम बरसाए. आज नो दिस के इस वीडियो में हम आपको नो-फ्लाई जोन के विवाद से जुड़ी जरूरी जानकारी देंगे. नो फ्लाई जोन क्या है... यूक्रेन इसकी मांग क्यों कर रहा है और रूस की इस पर क्या प्रतिक्रिया है... इन तमाम सवालों के जवाब के लिए आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ.
नो-फ्लाइंग जोन उस क्षेत्र को कहा जाता है जिसके ऊपर से कोई भी हवाई जहाज, लड़ाकू विमान, हैलीकॉप्टर उड़ान नहीं भर सके. ऐसे जोन युद्ध या संकट के समय बनाए जाते हैं. कई बार सुरक्षा व्यव्स्था को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील इलाकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए भी इसका ऐलान किया जाता है. नो फ्लाई जोन में किसी तरह के विमान को ऑपरेट करने की इजाजत नहीं होती.
रूस की तरफ से किए जा रहे हवाई हमलों में अब तक यूक्रेन का काफी नुकसान हो चुका है. ऐसे में अगर देश को नो फ्लाई जोन घोषित कर दिया जाए तो लड़ाई सिर्फ जमीनी स्तर तक सीमित रह जाएगी और यूक्रेन को रूस का मुकाबला करने में मदद मिलेगी. अब सवाल उठता है कि आखिर NATO यूक्रेन में नो फ्लाइंग जोन लागू क्यों नहीं कर रहा है.
दरअसल NATO का मानना है अगर वो यूक्रेन को नो-फ्लाइंग जोन का ऐलान करता है तो पहले से जो तनाव और अतिक्रमण जारी है वह और बढ़ सकता है और माहौल ज्यादा बिगड़ सकता है. माना जा रहा है कि अभी जो तनाव यूक्रेन तक सीमित है, वह पूरे यूरोप तक फैल सकता है. NATO को कई एयरक्राफ्ट तैनात करने पड़ेंगे और रूस और बेलारूस में जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को नष्ट करना होगा, उससे तनाव और बढ़ेगा.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी चेतावनी दी है कि जो भी देश जो यूक्रेन में नो-फ्लाई जोन लागू करेगा, उसे हम युद्ध में शामिल देश के तौर पर देखेंगे. उन्होंने कहा कि नो-फ्लाई जोन लागू करने से न केवल यूरोप बल्कि पूरी दुनिया के लिए भारी और विनाशकारी नतीजे होंगे. बता दें पश्चिमी देशों ने 1991 के Gulf War के बाद इराक के कई हिस्सों में नो-फ्लाई जोन बनाया था. 1993-95 के बीच बोस्निया और हर्जगोविना में सिविल वॉर के दौरान भी नो-फ्लाई जोन बनाए गए. फिर 2011 में लीबिया में गृह युद्ध के दौरान भी नो-फ्लाई जोन बनाए गए.