सिनेमा जगत के सबसे पुराने फिल्म फेस्टिवल में से एक कान्स फिल्म फेस्टिवल का आगाज हो चुका है। 28 मई तक चलने वाला ये फिल्म फेस्टिवल भारत के लिए कई मायनों में अहम है। क्योंकि भारत ‘Country Of Honour’ के रूप में कान्स फिल्म फेस्टिवल में शामिल हुआ। बता दें कि ‘कंट्री ऑफ ऑनर’ की परंपरा इस साल से ही शुरू हुई है। तो ऐसे में भारत के लिए ये सम्मान उस वक्त और भी अहम हो जाता है जब फ्रांस के साथ उसके कूटनीतिक संबंधों के 75 साल पूरे हो रहे हों। जाहिर है इस बार कान्स में भारतीय कला और संस्कृति की झलक दिखेगी। तो know this इस वीडियो में हम बात करेंगे कान्स फिल्म फेस्टिवल के इतिहास की। साथ ही हम बात करेंगे कैसे और कब इस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई। और इस फिल्म फेस्टिवल में भारत का सफर कितना लंबा रहा है।
सबसे पहले बात करें कान्स की तो ये फ्रांस का छोटा सा शहर है। जो मेडिटेरियन सी के किनारे बसा है। यहां फ्रेंच रिवेरा में होने वाला कान्स फिल्म फेस्टिवल दुनिया भर के सिनेमा जगत में अपनी खास अहमियत रखता है। अगर हम कान्स को ग्लैमरस सिटी कहें तो गलत नहीं होगा। क्योंकि यहां साल भर दुनियाभर के सेलिब्रिटी आते हैं और अपना जलवा बिखेरते हैं। खैर अब बात करें कान्स फिल्म फेस्टिवल की तो इस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत 20 सितंबर 1946 में हुई थी। इस इवेंट में दुनियाभर की चुनिंदा फिल्मों के साथ-साथ डॉक्यूमेंट्रीज और शॉर्ट फिल्म्स को दिखाया जाता है। बता दें कि 1946 में जब इस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई। उस वक्त 21 देशों की फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई थी। जिसमें चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर’ भी दिखाई गई थी। चेतन आनंद की फिल्म ‘नीचा नगर’ को फेस्टिवल के सबसे सम्मानित ‘ग्रांड प्रिक्स अवॉर्ड’ से नवाजा गया।
अब ‘ग्रांड प्रिक्स अवॉर्ड’ को The Palm d’Or के नाम से जाना जाता है। इसके बाद कई भारतीय फिल्मों की कान्स में स्क्रीनिंग हुई जिनमें 1951 में रिलीज हुई राजकपूर की फिल्म ‘आवारा’, 1953 में ‘दो बीघा जमीन’, 1954 में बूट पॉलिश, 1955 में पाथेर पांचाली, 1965 में गाइड, 1988 में सलाम बॉम्बे, 2002 में देवदास, 2010 में उड़ान, 2013 में इरफान खान की फिल्म लंच बॉक्स को भी सम्मानित किया जा चुका है। बता दें कि कान्स फिल्म फेस्टिवल में किसी भी फिल्म की स्क्रीनिंग होना बहुत मायने रखता है।
इसके अलावा 2006 में पहली बार तमिल फिल्म वेयिल (Veyil) की कान्स में स्क्रीनिंग की गई।उसके बाद मुरारी नायर की मलयालम फिल्म मरण सिंहासनम (Marana Simhasanam) ने 1999 में कैमरा डीओर अवॉर्ड जीता।
अब बात करें कान्स फिल्म फेस्टिवल में ज्यूरी की तो 1950 में कान्स की इंटरनेशनल ज्यूरी में चेतन आनंद भारत की तरफ से पहले सदस्य बने।उनके बाद 1980 में मृणाल सेन ज्यूरी का हिस्सा बने। 2003 में ऐश्वर्या राय कान्स की इंटरनेशनल ज्यूरी में पहली भारतीय महिला सदस्य थीं। और इस बार दीपिका पादुकोण बतौर सदस्य इंटरनेशल ज्यूरी में शामिल हो रही हैं।
इस फिल्म फेस्टिवल में दीपिका के अलावा कई नामी-गिरामी भारतीय चेहरे नजर आएंगे। इनमें एआर रहमान, शेखर कपूर, रिकी केज रेड कार्पेट पर चलने वाली हस्तियों में शामिल हैं। इनके अलावा एक्टर नवाजुद्दीन सिद्दीकी, गीतकार प्रसून जोशी और केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर भी इस फिल्म फेस्टिवल में शामिल हो चुके हैं।
इस बार कुल 6 भारतीय फिल्में स्क्रीनिंग के लिए शॉर्ट लिस्टेड हैं जिनमें रॉकेट्री- द नांबी इफेक्ट, अल्फा-बीटा-गामा, धुइन, गोदावरी, ट्री ऑफ पैरेट्स और बूमबा राइड शामिल हैं।