Ukraine और Russia दोनों ही देशों की सेना इस वक़्त भीषण जंग लड़ रही है. जिसकी वजह से अब यहां के लोगों की जिंदगी पर बड़ा खतरा मंडराने लगा है..रूसी सेना ने कई साल से बंद पड़े चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट पर कब्जा कर लिया है. ये पावर प्लांट उत्तरी यूक्रेन के शहर चेर्नोबिल में और प्रिपयात शहर के पास स्थित है. बता दें कि चेर्नोबिल न्यूक्लियर पावर प्लांट में 1986 में दुनिया की सबसे भीषण परमाणु आपदा आयी थी.. ये हादसा कितना भयानक था इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस हादसे में मारे गए लोगों की असली संख्या अब भी पता नहीं है.. तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि एक ऐसे शहर का न्यूक्लियर प्लांट जो पहले से ही तबाह है फिर रूस ने इस पर कब्जा क्यों किया ? इसके साथ ही 1986 में चेर्नोबिल में सबसे बड़ा परमाणु हादसा आखिर हुआ कैसे था? तो आज के know this वीडियो में हम आपको इन सारे सवालों के जवाब देंगे बस आप बने रहिए हमारे साथ..
दरअसल इस तबाह प्लांट पर रूस का कब्जा करने के कई कारण हैं, सबसे पहला और सबसे जरूरी तो ये कि उत्तरी यूक्रेन स्थित चेर्नोबिल शहर बेलारूस से यूक्रेन की सीमा से महज 10 मील दूर है. बेलारूस रूस का एक प्रमुख सहयोगी है. रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि रूस ने चेर्नोबिल पर इसलिए कब्जा किया क्योंकि यह यूक्रेनी सेनाओं पर आक्रमण का सबसे तेज जमीनी मार्ग है. चेर्नोबिल सैन्य लिहाज से बहुत अहम नहीं है लेकिन इसकी लोकेशन महत्वपूर्ण है.
अब आपको चेर्नोबिल में हुए उस दर्दनाक हादसे की कहानी बताते हैं.. लगभग 36 साल पहले 26 अप्रैल 1986 को तत्कालीन सोवियत संघ के चेरनोबिल के न्यूक्लियर पावर प्लांट में एक विनाशकारी धमाका हुआ था. इस हादसे की भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि धमाके के चंद घंटे में प्लांट में काम करने वाले 32 कर्मचारियों की मौत हो गई थी इसके अलावा सैकड़ों कर्मचारी न्यूक्लियर रेडिएशन की वजह से बुरी तरह से जल गए थे. शुरू में तो सोवियत संघ ने इस हादसे को छिपाने की पूरी कोशिश की. विभाजन के बाद चेरनोबिल शहर यूक्रेन के हिस्से में आ गया था.
26 अप्रैल को दुर्घटना वाले दिन न्यूक्लियर पावर प्लांट में एक टेस्ट किया जाना था. इस दौरान साइंटिस्ट ये चेक करना चाहते थे कि क्या बिजली सप्लाई बंद होने की स्थिति में रिएक्टर के बाकी उपकरण काम करते हैं कि नहीं। 25 अप्रैल की रात करीब 1.30 बजे टरबाइन को कंट्रोल करने वाले वॉल्ब को हटा दिया गया. उसके बाद रिऐक्टर को आपातकालीन स्थिति में ठंडा रखने वाले सिस्टम को भी बंद कर दिया गया. रिऐक्टर के स्विच को भी ऑफ कर दिया। इसके कारण अचानक रिऐक्टर के अंदर नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया बेकाबू हो गई. तेजी से भाप बनने लगा जिससे रिऐक्टर के अंदर दबाव बढ़ गया. इससे थोड़े ही समय के अंदर दो शक्तिशाली विस्फोट हुए जिससे पूरे वातावरण में रेडियोएक्टिव पदार्थ फैल गया.. ये धमाका इतना शक्तिशाली था कि रिऐक्टर को ढकने वाली एक हजार टन से ज्यादा वजन की मेटल प्लेट और उसके ऊपर बनी कंक्रीट की मजबूत छत हवा में उड़ गए. रिऐक्टर में इस्तेमाल होने वाली परमाणु ईंधन की छड़ों के परखच्चे उड़ गए थे . यहाँ तक कि इस रेडिएशन से होने वाले कैंसर से बाद में सोवियत संघ के करीब 5,000 नागरिकों की मौत हो गई थी. लाखों लोगों का स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ था.