चीन अपने स्पेस मिशन से लगातार दुनिया को चौंकाता आया है। पिछले साल चीन ने अपना स्पेस स्टेशन का पहला मॉड्यूल अंतरिक्ष में स्थापित किया था। और अब तीन एस्ट्रोनॉट को अपने नए स्पेस स्टेशन पर काम करने के मिशन पर लगा दिया है। चीन अगले साल शुनतियान नाम का टेलिस्कोप अंतरिक्ष में स्थापित करेगा। जबकि 2030 तक चीन की योजना चांद पर अपना पहला अंतरिक्ष यात्री उतारने की है। चीन की महत्वाकांक्षा मंगल और ज्यूपिटर तक जाती हैं। जहां वो अपना रोवर भेजकर मिट्टी और चट्टानों के सैंपल इकट्ठा करना चाहता है। तो KNOW THIS के इस वीडियो में चीन के स्पेस मिशन के बारे में विस्तार से बताएंगे।बस वीडियो में आखिर तक बने रहिए हमारे साथ।
4 अक्टूबर 1957 को जब सोवियत यूनियन ने अपना पहला सैटेलाइट स्पूतनिक-1 लॉन्च किया। उस वक्त चीन के मौजूदा राष्ट्रपति माओत्से तुंग ने तय किया था। अगर हमें सुपर पावर्स की बराबरी करनी है तो सैटेलाइट बनाना पड़ेगा। इसके साथ ही चीन का प्रोजेक्ट-581 शुरू हुआ, जिसका मकसद 1959 तक सैटेलाइट लॉन्च करना था। लेकिन चीन को कामयाबी करीब 11 साल बाद मिली। 24 अप्रैल 1970 को चीन ने अपना पहला सैटेलाइट ‘डोंग फांग होंग’ सक्सेसफुली लॉन्च किया। उसके बाद चीन का स्पेश मिशन लगातार बढ़ता गया। 2003 में चीन पहली बार अंतरिक्ष में इंसान भेजने में कामयाब हुआ। ऐसा करने वाला चीन दुनिया का तीसरा देश था। 2020 में जब दुनियाभर में कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन था। उस वक्त चीन का चांग-ई 5 सैटेलाइट धरती पर चांद की मिट्टी के नमूने लेकर वापस लौटा। इस सैटेलाइट ने चांद की रंगीन तस्वीरें भी भेजी थीं। इसके बाद चीन ने 24 अप्रैल 2020 को मंगल ग्रह में जीवन की संभावनाओं की तलाश में तियानवेन-1 प्रोग्राम लॉन्च किया। 7 महीने की लंबी यात्रा के बाद तियानवेन-1 मंगल ग्रह में दाखिल हुआ और मई 2021 में सॉफ्ट लैंडिंग की।
2011 में चीन ने स्पेश स्टेशन की दिशा में काम शुरू कर दिया था। अंतरिक्ष में मौजूद चीन का छोटा सा स्पेश स्टेशन 2016 में बंद पड़ गया था। चीन की प्लानिंग की है कि वो 2022 तक अंतरिक्ष में मानव सहित स्पेस स्टेशन स्थापित करेगा।
अब बात करें चीन के तियानगोंग स्पेस स्टेशन की तो इसे 2021 में लॉन्च किया गया था और अब इसमें साइंस लैब और दूसरे मॉड्यूल जोड़ने का काम चल रहा है। चीन को उम्मीद है कि 2031 तक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की सर्विस पूरी होने के बाद तियानगोंग उसकी जगह लेगा। फिलहाल चीन को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से बाहर रखा गया है। यानि उसके सैटेलाइट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से नहीं जुड़ सकते।
भविष्य में चीन अपने स्पेस मिशन को तेजी से बढ़ाना चाहता है इसके लिए चीन इस साल तक तियानगोंग स्पेस स्टेशन को पूरी तरह तैयार कर लेगा। उसके बाद 2030 तक मंगल ग्रह के नमूने लाने के लिए रोबोटिक मिशन लॉन्च करेगा। इसके अलावा बृहस्पति ग्रह पर मानवरहित खोजी मिशन की शुरुआत करना। चांद पर अंतरिक्ष यात्री भेजना और उन्हें लंबे वक्त तक वहां रहने का इंतजाम करना। 2035 तक ऐसे रॉकेट बनाना जिनका दोबारा इस्तेमाल किया जा सके। 2040 तक ऐसे स्पेस शटल का निर्माण करना जो परमाणु ऊर्जा से संचालित होते हों। ये सब चीन का फ्यूचर प्लान है। चीन 2045 तक रूस और अमेरिका को पछाड़कर अंतरिक्ष पर राज करने की ख्वाहिश रखता है।
चीन की इस बेताबी की वजह भी साफ है। मंगल ग्रह की भौगोलिक स्थित को देखते हुए माना जाता है कि वहां जीवन की संभावना हो सकती है। साथ ही मंगल ग्रह में कई बेशकीमती खनिज होने की बात भी कही जा रही है। इसके अलावा चांद पर नॉन रेडियोएक्टिव हीलियम गैस का असीमित भंडार है। इसका इस्तेमाल न्यूक्लियर फ्यूजन यानि परमाणु संयंत्रों को और ताकतवर बनाने में किया जा सकता है। चीन की नजर इस हीलियम गैस के अकूत भंडार पर भी है। इसके अलावा चांद की सतह के नीचे कई तरह की बहुमूल्य धातुएं मौजूद होने की संभावना जताई जा रही है। इनमें सोना, प्लैटिनम, टाइटेनियम, यूरेनियम और आयरन शामिल हो सकती हैं। चीन की नजर इन सभी खनिज संसाधनों को उपयोग करने की है।
हालांकि चीन का स्पेस मिशन कई बार विवादों में भी रहा है। 2019 में चीन वाइस प्रेसीडेंट माइक पेंस ने चीन के सीक्रेट स्पेस मिशन पर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा था ‘चीन ने चांद की सतह पर अपना सीक्रेट स्पेसक्रॉफ्ट उतारा है। चीन की योजना चांद पर कब्जा करने की है।’
2020 में हांगकांग से प्रकाशित होने वाले साउथ चाइना मार्निंग पोस्ट ने एक खबर में चीन के सीक्रेट स्पेसक्रॉफ्ट के ट्रायल के बारे में बताया था। इस स्पेसक्राफ्ट की खासियत है कि इसे अंतरिक्ष में भेजकर वापस धरती पर लैंड कराया जा सकता है। हालांकि अभी तक इस स्पेसक्राफ्ट की पुष्टि नहीं हो सकी है।