एशिया समेत दुनिया के तमाम देशों में चीन अपना दबदबा बनाने की कोशिश में जुटा है। इसके लिए फिर चाहे भारी भरकम कर्ज के बोझ तले छोटे देशों को दबाने की कोशिश हो या। फिर बुनियादी सुविधाओं के विकास का लालच हो या सुरक्षा देने का आश्वासन देकर बरगलाने की कोशिस। शातिर ड्रैगन अपने हाथ से कोई भी मौका जाने नहीं देता। भारत के पड़ोसी देशों नेपाल, श्रीलंका, पाकिस्तान और म्यामांर का हाल सबके सामने है। अपनी चालबाजी के जाल में फंसाकर चीन इन देशों को अपने इशारों पर नचा रहा है। अब चीन की नजरें प्रशांत महासागर में बसे छोटे-छोटे द्वीप समूहों पर टिक गई हैं। हाल ही में खबर आई है कि चीन सोलोमन द्वीप पर अपना सैन्य ठिकाना बना रहा है। इस खबर के सामने आते ही न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका समेत कई देशों की नींद उड़ गई है। अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन की इस हरकत को देखते हुए आस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर सबमरीन देने का ऐलान कर दिया है।
हालांकि इस पूरे मसले पर सोलोमन द्वीपसमूह की सरकार ने अपने पुराने सहयोगियों न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका को आश्वस्त करते हुए कहा है कि वो अपने यहां चीन को सैन्य अड्डा नहीं बनाने देगा, लेकिन इस आश्वासन के बाद भी इन देशों की चिंता कम होती नहीं दिखाई दे रही है। वहीं माइक्रोनेशिया ने चेतावनी दी है कि चीन और सोलोमन द्वीप समूह की सरकार के बीच ये समझौता दक्षित प्रशांत क्षेत्र में एक बार फिर अस्थिरता पैदा कर देगा।
आखिर ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड की चिंता की वजह क्या है?
दरअसल सोलोमन आईलैंड से निकलने वाली ग्वाडल कैनाल प्रशांत महासागर से आस्ट्रेलिया होते हुए न्यूजीलैंड तक पहुंचती है। इसी कैनाल को लेकर सारा विवाद है। करार के तहत चीन इस कैनाल का भी उपभोग करेगा जिसको लेकर इन न्यूजीलैंड और आस्ट्रेलिया के साथ तनाव बढने की आशंका है।
बात करें सोलोमन आईलैंड की तो ये छोटे-छोटे द्वीप समूह प्रशांत महासागर में बसे हैं। जिनपिंग ने इन आईलैंड्स के साथ समझौता किया है। जिसके तहत चीन इन देशों को कर्ज देगा ताकि ये देश अपना डेवलपमेंट कर सकें बदले में चीन इन आईलैंड्स पर अपने बेस बनाएगा जिनका उपयोग मिलिट्री बेस के तौर पर भी किया जा सकता है। चीन अपने विश्वव्यापी हितों की आड़ में एशिया और अमेरिकी सैन्य प्रभुत्व को चुनौती देना चाहता है। फिलहाल दुनिया के 90 से अधिक बंदरगाहों पर चीन का कब्जा है, जिनका उपयोग वह जहाजों के ठहरने और कारोबार के लिए करता है।
वहीं इस मिलिट्री बेस पर चीन का दावा है कि वो सोलोमन द्वीप में शांति और स्थिरता और व्यापार को बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है। लेकिन इस क्षेत्र में चीन की दखलअंदाजी दक्षिणी प्रशांत महासागर में उथल-पुथल मचा देगी। एक बार फिर ये क्षेत्र परमाणु ताकत संपन्न महाशक्तियों का अखाड़ा बन जाएगा।