2019 में टेक्सस के एक प्रोफेसर एंथनी क्लॉट्ज ने ये टर्म उछाला था. उन्होंने भविष्यवाणी की थी कि लाखों लोग अपनी नौकरी से पलायन करेंगे. और सिर्फ 2 साल के अंदर उनकी ये भविष्यवाणी सच साबित हो रही है.
अब समझते हैं कि लोग नौकरी छोड़ क्यों रहे हैं ?
इसके पीछे कोई एक वजह नहीं बल्कि कई सारे कारण हैं जैसे कम सैलेरी, परिवार से दूर होना, ट्रांसफर की चिंता या कोरोना का डर लेकिन इन सबके अलावा जो सबसे बड़ी वजह सामने आ रही है वो है काम और ज़िन्दगी के बीच बैलेंस यानि वर्क लाइफ बैलेंस. कोरोना से पहले की बात करें तो हमारी जिंदगी का ज्यादातर हिस्सा हमारे काम पर बेस्ड होता था. हम ऑफिस कैलेंडर के हिसाब से अपना शेड्यूल बनाते थे. सिर्फ वीकेंड पर घूमने जाना या दोस्तों से मिलना... काम के चलते परिवार को कम समय देना.
लेकिन इस पेंडेमिक ने सब बदल दिया और लोगों को नए तरह से सोचने पर मजबूर कर दिया. पेंडेमिक ने हमें सिखाया है कि जिंदगी बहुत छोटी है. अब लोगों को एक ऐसी नौकरी चाहिए जिसमें वो अपनी प्रेफेरेंस के मुताबिक काम कर सकें. वो नौकरी जो फ्लेक्सिबल हो... जिसमें वो अपने घर से काम कर सकें.. काम के घंटे कम हो.. काम करने के दिन कम हो. एक ऐसी नौकरी जो उनकी लाइफ स्टाइल से मैच हो ताकि वो अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकें.
नौकरी छोड़कर क्या कर रहे हैं लोग?
कुछ लोग फुल टाइम नौकरी छोड़कर फ्रीलासिंग का रुख कर रहे हैं ताकि वो अपने परिवार को समय दे सकें...कई बिना रिटायरमेंट का वेट किए शहर छोड़कर वापस अपने घर लौट रहे हैं... तो कुछ नौकरी छोड़कर आगे पढ़ाई करने या कुछ नया सीखने की तैयारी में है. कई लोगों ने अपनी हॉबी को फुल टाइम जॉब बना लिया है... कुछ घर पर रहकर फुल टाइम ट्रेडिंग कर रहे हैं... रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 106 मिलियन लोग क्रिप्टोकरंसी में ट्रेड कर रहे हैं. वहीं कई लोग स्टार्ट अप की तैयारी में हैं. 2020 में अमेरिका में 14lakh स्टार्ट अप रजिस्टर किए गए. वहीं भारत में सिर्फ 2020 में टेक सेक्टर में 1600 स्टार्ट अप शुरू हुए.
एक सर्वे में जब Employees से पूछा गया कि आप नौकरी क्यों छोड़ना चाहते हैं तो 40 फीसदी लोगों ने बर्नआउट को वजह बताया यानि काम के चलते होने वाली थकान.. 20 फीसदी लोगों ने कहा कि उनकी जॉब फ्लेक्सिबल नहीं है. वहीं 16 फीसदी का मानना था कि कंपनी को उनकी वेल बींग की परवाह नहीं इसलिए उन्होंने रिजाइन कर दिया. अब वो लाइफ को अपनी जॉब के हिसाब से जीने के बजाय ऐसी नौकरी चाहते हैं जो उनकी लाइफ में फिट हो सके. एक ऐसी नौकरी जहां वर्क लाइफ का बेलेंस बन सकें. द ग्रेट रेजिग्नेशन को वर्कर्स रिवॉल्यूशन भी कहा जा रहा है जिसमें वर्कर्स ने जिंदगी को नए नजरिए से देखना शुरू किया है.
बता दें नौकरी छोड़ने वालों में युवा सबसे आगे हैं. लिंक्डइन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जनरेशन जी (एक्सप्लेन) के 80%, मिलेनियल्स 50%, जनरेशन एक्स (एक्सप्लेन) के 31% और 5% बेबी बूमर्स अपनी मौजूदा नौकरी छोड़ना चाहते हैं.
अब ये तो था कर्मचारियों का नजरिया लेकिन इससे कंपनियों को क्या नुकसान हुआ है? ये जानने की कोशिश करते हैं.
2020 कई कंपनियों के लिए काफी मुश्किल रहा.. ऑफिस बंद थे.. काम भी कुछ खास नहीं चल पाया और अब वर्कर्स क्विट कर रहे हैं. इस वक्त अमेरिका में 1crore जॉब ओपनिंग्स हैं. जर्मनी को 4 लाख स्किल्ड लेबर्स की जरूरत है. ऐसे में कंपनियां कई अलग-अलग तरीके अपना रही है. कुछ ज्यादा इंक्रिमेंट और बोनस ऑफर कर रही है तो कुछ कंपनियां ज्यादा छुट्टियां दे रही हैं, कुछ फूड कूपन बांट रही है तो कुछ काम के घंटे कम कर रही है. कंपनियों को अब ये मानना होगा कि कर्मचारियों के लिए सिर्फ पे चैक काफी नहीं. मेंटल पीस, अच्छी जिंदगी और अच्छे संबंध भी उतने ही जरूरी बन चुके हैं.