स्वीडन और फिनलैंड (Finland) के बीच इन दिनों टॉप-लेवल की बातचीत बढ़ गई है. ऐसे में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि दोनों मुल्क 16 मई को संयुक्त रूप से नाटो में शामिल होने का ऐलान कर सकते हैं. असल में स्वीडन की प्रधानमंत्री मैग्डेलेना एंडरसन और फिनलैंड की प्रधानमंत्री सना मारिन बर्लिन के पास श्लॉस मेसेबर्ग में जर्मनी के चांसलर ओलाफ शोल्ज (Olaf Scholz) के साथ मुलाकात करेंगी. तीनों नेताओं के बीच ये मुलाकात तीन मई को होने वाली है. इसमें सुरक्षा मुद्दों को लेकर चर्चा होगी, लेकिन बैठक के दौरान दोनों मुल्कों के नाटो में शामिल होने पर भी बात होगी. अगर ऐसा होता है, तो रूस भड़क सकता है.
वहीं रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा किए जाने के बाद से नॉर्डिक देशों ने नाटो के साथ सहयोग बढ़ाना शुरू कर दिया। लेकिन यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से फिनलैंड और स्वीडन जैसे देश अपने रुख पर विचार कर रहे हैं और नाटो की सदस्यता चाहते हैं। फिनलैंड के विदेश मंत्री पेक्का हाविस्टो ने नाटो में शामिल को लेकर पूछे गए सवाल पर जवाब देने से इनकार कर दिया हालांकि उन्होंने कहा कि वह चाहेंगे कि फिनलैंड और स्वीडन एक समान विकल्प के साथ चलें। बता दें कि रूस ने नाटो की सदस्यता लेने की कोशिश करने पर यूक्रेन पर हमला किया था, साथ ही अपनी सीमा से लगते अन्य देशों को भी चेतावनी दी थी कि वो नाटो की सदस्यता लेने संबंधी विचार त्याग दे नहीं तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। रूस की चेतावनी देने के बाद भी फिनलैंड व स्वीडन नाटो का सदस्य बनने की कोशिश में लगे हैं।
इधर इस बात की उम्मीद की जा रही है कि फिनलैंड मई के पहले या दूसरे हफ्ते में नाटो की सदस्यता पर फैसला ले सकता है. प्रधानमंत्री मारिन की सिफारिश के आधार पर राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा अंतिम फैसले की पुष्टि की जाएगी. हालांकि, सरकार की विदेश और सुरक्षा नीति समिति का फैसला भी अहम रहने वाला है. स्वीडन में 24 अप्रैल को नाटो में शामिल होने की तत्काल जरूरत पर जोर दिया गया. सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा नीति मूल्यांकन प्रस्तुत करने का फैसला किया. प्रधानमंत्री एंडरसन ने इसे ‘नाटो सॉल्यूशन’ के तौर पर बताया. सुरक्षा रिपोर्ट मई के मध्य में तैयार हो जाएगी. ऐसे में इसके बाद ही स्वीडन नाटो में शामिल होने का फैसला कर सकता है.
दूसरी तरफ, फिनलैंड, स्वीडन और रूस के रिश्ते नाटो के मुद्दे को लेकर खराब होते जा रहे हैं. दरअसल, दोनों ही मुल्कों ने यूक्रेन के खिलाफ युद्ध की शुरुआत करने पर यूरोपियन यूनियन और अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का समर्थन किया है. साथ ही मॉस्को पर अधिक कड़े प्रतिबंध लगाने की बात भी की है. इसके अलावा, स्वीडन ने यूक्रेन को युद्ध में लड़ने के लिए हथियारों की सप्लाई भी की है. रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की शुरुआत 24 फरवरी को हुई थी. इसके बाद से ही अभी तक युद्ध जारी है. इस युद्ध की वजह से अभी तक लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा है.