गंभीर आर्थिक संकट के बीच श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने देश में इमरजेंसी का फैसला वापस ले लिया है. देश में हिंसक प्रदर्शन को देखते हुए ये इमरजेंसी लगाई थी. विदेशी कर्ज के जाल में फंसकर श्रीलंका अपने इतिहास के सबसे बुरे आर्थिक संकट से जूझ रहा है. माना जा रहा है कि श्रीलंका की जो हालत है उसके लिए चीन भी काफी हद तक जिम्मेदार है. आज नो दिस के इस वीडियो में हम जानेंगे कि श्रीलंका की खराब आर्थिक स्थिति के पीछे चीन का क्या हाथ है. आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ.
श्रीलंका के इन हालात के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार चीन से लिया हुआ कर्ज है. रिपोर्ट्स की मानें तो चीन ने श्रीलंका को 4.6 अरब डॉलर का कर्ज दिया हुआ है.
श्रीलंका पर 2022 में लगभग 7 बिलियन अमरीकी डॉलर का विदेशी कर्जा है. दावा है कि इसमें 18 फीसद हिस्सेदारी अकेले चीन की है. चीन की कूटनीतिक चाल का हिस्सा है कि वो मजबूर देशों को कर्ज के चंगुल में फंसाता है और उनकी नीतियों में भी दखल देता है. कर्ज ना चुका पाने की वजह से श्रीलंका को अपना हम्बनटोटा पोर्ट भी 100 साल की लीज पर चीन को देना पड़ा.
माना जाता है कि कर्ज समय से न चुका पाने की स्थिति में देशों को मजबूरन चीन के सामने घुटने टेकने पड़ते हैं. पाकिस्तान और नेपाल जैसे देश इसका बेहतरीन उदाहरण माने जा सकते हैं. ऐसे ही श्रीलंका में कई प्रोजेक्ट पर चीन का कब्जा हुआ और श्रीलंका कर्ज में होने की वजह से काफी प्रोजेक्ट लीज पर चले गए. इस वजह से श्रीलंका धीरे धीरे बर्बादी की ओर से बढ़ता गया.
श्रीलंका के आर्थिक हालात कोरोना महामारी की वजह से काफी खराब हुए. वहां के लोगों की आमदनी का जरिया पर्यटन था, जो महामारी के चलते बुरी तरह प्रभावित हुआ. एक रिपोर्ट के मुताबिक श्रीलंका में दो लाख से ज्यादा लोगों की नौकरियां पर्यटन क्षेत्र से गई हैं. कोविड महामारी, पर्यटन उद्योग की तबाही, बढ़ते सरकारी खर्च, विदेशी कर्ज और टैक्स में जारी कटौती की वजह से सरकारी खजाना खाली हो गया. इसके बाद चीन को मदद के नाम पर पैर पसारने का मौका मिला, लेकिन इसकी बुनियाद चीन ने पहले ही श्रीलंका में रख दी थी.
गेटवे की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005-2015 के दौरान चीन श्रीलंका में FDI के प्रमुख स्रोत के रूप में उभरा. चीन ने श्रीलंका में कई प्रोजेक्ट शुरू किए गए और इन प्रोजेक्ट के जरिए रोजगार, विकास आदि की बात कही गई, लेकिन इस तरह चीन श्रीलंका में पांव पसारता रहा. बता दें कि साल 2005 में, श्रीलंका में चीन का एफडीआई 16.4 मिलियन डॉलर था यानी कुल श्रीलंकाई FDI का 1% से कम था. मगर साल 2015 तक चीनी निजी निवेश 338 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया जो श्रीलंका के कुल एफडीआई का 35% है. वहीं एफडीआई में नीदरलैंड का हिस्सा 9% था, मलेशिया की तरह भारत का 7% था, और सिंगापुर का केवल 3 प्रतिशत था. देखना होगा कि बाकी देशों के सहयोग से श्रीलंका इस संकट से निकल पाता है या नहीं.