अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने 24 जून को गर्भपात से जुड़े 50 साल पुराने फैसले को पलट दिया है। अदालत ने अमेरिकी महिलाओं को 1973 में 'रो बनाम वेड' मामले से मिली गर्भपात की संवैधानिक सुरक्षा खत्म कर दी है। इस फैसले के बाद अमेरिका दो धड़ों में बंट गया है। जहां एक पक्ष फैसले को ऐतिहासिक बताते हुए जोरदार स्वागत कर रहा है। वहीं दूसरा धड़ा इसके विरोध में सड़कों पर उतर आया है। सबसे पहले हम बात करेंगे आखिर ‘रो बनाम वेड’ मामला क्या था। साथ ही इससे अमेरिकी महिलाओं का कौन से अधिकार मिले थे जो अब छिन गए हैं।
आपको बता दें 1973 में ‘रो बनाम वेड’ केस में अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था। जिसके तहत अमेरिकी महिलाओं को गर्भपात कराने का अधिकार दिया था। 1973 में 'रो बनाम वेड' फैसले के बाद से अमेरिका में लीगल तरीके से लगभग 5 करोड़ अबॉर्शन किए जा चुके हैं। बात करें 2020 की तो हर 5 में से एक अमेरिकी महिला ने अबॉर्शन कराया था।
अब इस केस का नाम रो वर्सेज वेड क्यों पड़ा इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है।नोर्मा मैककॉर्वी जिन्हें आज दुनिया 'जेन रो' के नाम से जानती है। इन्होंने 1969 में अबॉर्शन को लीगल कराने के लिए लड़ाई लड़ी थी। नोर्मा ने 1969 में राज्य के उस कानून को चुनौती दी, जिसके हिसाब से अबॉर्शन अवैध था। मामला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और उन्हें जीत मिली।
जेन रो ने जब अबॉर्शन को लीगल कराने करने के लिए याचिका दायर की थी, तब सरकारी वकील हेनरी वेड ने विरोध में बहस की थी। इस वजह से इस मामले को दुनिया भर में 'रो बनाम वेड' से जाना जाने लगा। इस फैसले ने जेन रो को अमेरिका के घर-घर में फेमस कर दिया था।
अब बात करें नोर्मा मैककॉर्वी की तो इनका जन्म 22 सितंबर, 1947 को हुआ था। 13 साल की उम्र में माता-पिता के तलाक के बाद इनका जीवन कई परेशानियों से गुजरा।15 साल की उम्र में ही उनके चचेरे मामा ने उनका तीन हफ्तों तक रेप किया।16 साल की उम्र में उन्होंने एक तलाकशुदा आदमी से शादी की। उनका ये फैसला भी किसी बुरे सपने से कम साबित नहीं हुआ। नोर्मा का पति उनके साथ मारपीट करता था। जिससे तंग आकर वो अपनी मां के पास लौट गईं।पहले बच्चे के जन्म के बाद उन्हें ड्रग्स की लत लग गई थी, कुछ साल बाद उनके दूसरे बच्चे का जन्म हुआ।
21 साल की उम्र में जब वो तीसरी बार प्रेगनेंट हुई तो उन्होंने पहले तो गैंगरेप का झूठा दावा कर अबॉर्शन कराना चाहा।। लेकिन पुलिस की जांच में गैंगरेप का सबूत नहीं मिलने से वो सफल नहीं हुईं। बाद में उन्होंने कहा कि वो अविवाहित और बेरोजगार हैं इसलिए गर्भपात करना चाहती हैं।
इस दौरान वो वकील लिंडा कॉफी और सारा वेडिंग्टन से मिलीं। जो गर्भपात की मांग करने वाली महिलाओं को तलाश रही थीं। 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके मामले में फैसले देते हुए कहा कि गर्भपात करना है या नहीं ये महिलाओं का अधिकार है। इसके बाद से ही अमेरिका के कई राज्य अबॉर्शन की सुविधा देने के लिए मजबूर हो गए।
अब बात करें भारत की तो भारत में दुष्कर्म पीड़ित या पारिवारिक यौन शोषण की शिकार या नाबालिग को 24 हफ्तों के अंदर गर्भपात कराने की इजाजत है। साथ ही ऐसी महिलाएं जिनकी वैवाहिक स्थिति गर्भावस्था के दौरान बदल गई हो यानि वो विधवा हो गईं हो या तलाक हो गया हो। और दिव्यांग महिलाओं को भी 24 हफ्ते तक गर्भपात अधिकार है। अगर भ्रूण में कोई ऐसी विकृति या गंभीर बीमारी हो जिसकी वजह से प्रेगनेंट महिला की जान को खतरा हो, तो 24 हफ्तों में गर्भपात कराया जा सकता है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी गर्भपात को लेकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश को खतरनाक रास्ते पर ले जा रहा है हालांकि उन्होंने प्रदर्शनकारियों से अपील की है कि वो कानून को अपने हाथ में न ले तो अच्छा है।