यूक्रेन पर हमले की वजह से रूस पर अमेरिका समेत कई यूरोपिय देशों ने प्रतिबंध लगाए हैं. लेकिन एक बात बार-बार कही जा रही है कि यूक्रेन को युद्ध में झोंकने के बावजूद यूरोपिय देश रूस से तेल आयात करना बंद क्यों नहीं कर रहे हैं. वो क्या मजबूरी है कि एक तरफ यूरोपिय देश युद्ध की वजह से रूस पर प्रतिबंधों के पक्षधर भी हैं लेकिन वो उससे तेल भी खरीद रहे हैं. तो आज के नो दिस के वीडियो में हम जानने की कोशिश करेंगे कि रूस से तेल खरीदने पर यूरोपिय देशों की क्या स्थिति है. क्या यूरोपिय देश रूस से तेल खरीदने पर प्रतिबंध लगा सकते हैं. इस पर यूरोप के अलग अलग देशों की क्या स्थिति है.
रूस और यूक्रेन के बीच जंग की वजह से तेल संकट पैदा हो गया है. रूस पर युद्ध खत्म करने का दबाव डालने के लिए यूरोपिय संघ रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगाना चाहता है. लेकिन ये इतना आसान नहीं है. कई देश ऐसे प्रतिबंध के खिलाफ हैं. यूरोप के कई देशों ने चिंता जताई है कि रूस से तेल नहीं खरीदने की सूरत में उनकी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा. जर्मनी रूस पर प्रतिबंध लगाने के पक्ष मं खुलकर सामने आ गया है. लेकिन 29 साल पुराना यूरोपिय संघ इस मामले में एकमत नहीं है.
रूस से तेल आयात करने की बात की जाए तो यूरोप के देशों की स्थिति अलग अलग है. कई देश अपनी उर्जा की जरूरतों के लिए रूस के तेल पर पूरी तरह से निर्भर हैं. इनमें से कई देश ऐसे भी हैं जो रूस से बहुत ज्यादा मात्रा में तेल आयात करते हैं. लेकिन इसके बावजूद रूस से व्यापारिक रिश्ते खत्म होने की स्थिति में भी आर्थिक झटका बर्दाश्त कर सकते हैं. जर्मनी ऐसे ही देशों में शामिल है. लेकिन सभी यूरोपिय देशों की ऐसी स्थिति नहीं है.
रूस से तेल आयात करने पर प्रतिबंध के लिए ये जरूरी है कि यूरोपिय संघ के सभी 27 सदस्य देश इसका समर्थन करें. इसमें समस्या छोटे देशों के साथ है. छोटे देश रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं. इससे उनकी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा. हंगरी, स्लोवाकिया और साइप्रस जैसे देश रूस के तेल पर कुछ ज्यादा ही निर्भर हैं. तेल आयात पर प्रतिबंध इन देशों की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ देगा. इसलिए ये देश रूस से तेल आयात के प्रतिबंध की नीति का समर्थन नहीं कर पा रहे हैं. ये विरोध तो नहीं कर पा रहे हैं लेकिन इन्हें इस नीति के नतीजों की चिंता सता रही है. इस बारे में यूरोपिय कमीशन की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयन का कहना है कि तेल आयात पर प्रतिबंध की नीति पर यूरोपिय देशों में एकता हासिल करना आसान नहीं है. उनका कहना है कि जो देश इस नीति को लेकर हिचक रहे हैं, वो अभी तक तैयार नहीं हैं. हम देशों के साथ मिलकर बैठेंगे और व्यावहारिक तौर पर इसका रास्ता निकालने की कोशिश करेंगे. इन देशों से बात की जाएगी कि वो उर्जा के लिए तेल के वैकल्पिक स्रोतों की व्यवस्था की कोशिश करें.
हंगरी और स्लोवाकिया ने रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने का विरोध किया है. हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओर्बान ने कहा कि तेल आयात पर प्रतिबंध लगाना हंगरी के लिए लाल रेखा पार करने जैसा होगा. वहीं साइप्रस, ग्रीस और माल्टा भी रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध के पक्षधर नहीं है. इन तीनों देशों के पास यूरोपिय संघ में सबसे बड़े जहाजी बेड़े हैं. साइप्रस और ग्रीस की स्थिति एक जैसी है. दोनों देश रूसी हमले के खिलाफ और प्रतिबंध के समर्थक हैं लेकिन तेल आयात पर प्रतिबंधों की नीति से चिंतिंत हैं.
अब सवाल है कि क्या यूरोपिय संघ अपने सदस्य देशों की चिंता दूर कर सकता है. बताया जा रहा है कि यूरोपिय संघ ने तेल आयात पर प्रतिबंध में कुछ बदलाव के संकेत दिए हैं. ताकि इन देशों की चिंता को कम किया जा सके. नए प्लान में हंगरी और स्लोवाकिया को साल 2024 तक रूस से तेल आयात करने की छूट होगी. मूल प्रस्ताव में ऐसी व्यवस्था है जिसमें छह महीने में रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध और साल 2022 के अंत तक रूसी रिफाइन तेल के उत्पादों के आयात को बंद करना होगा. नए प्रस्ताव में शिपिंग कंपनियों को तीन महीने का वक्त दिया जाएगा. जिसमें वो रूसी तेल के पुराने आयात का काम खत्म कर सकें.
यूरोपिय संघ रूस से तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रहा है. लेकिन इसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जा सकेगा. इसमें संघ के सभी देशों की चिंता को दूर करने की कोशिश भी होगी.