लंका की डूबती नैया को पार लगाने वाला जल्द आने वाला है। लंका में धधक रही सत्ता विरोधी प्रदर्शन जल्द खत्म हो जाएंगे। लंका की डगमगाती अर्थव्यवस्था को संभालने वाला मजबूत कंधा इसी हफ्ते मिल जाएगा।
जी हां। ये बात हम नहीं कह रहे श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे कह रहे हैं। दरअसल 11 मई को गोटाबाया राजपक्षे ने राष्ट्र को संबोधित किया। अपने संबोधन के दौरान उन्होंने कहा, ‘इस हफ्ते मैं एक ऐसे प्रधानमंत्री की नियुक्ति करूंगा जो संसद में बहुमत हासिल कर सकता है और देश के लोगों का विश्वास हासिल कर सकता है।'
बाइट- गोटाबाया राजपक्षे
देश में नए प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की नियुक्ति के बाद श्रीलंका के संविधान में भी संशोधन किया जाएगा। जिससे संसद की शक्तियां बढ़ जाएंगी। खबर है कि गोटाबाया राजपक्षे राष्ट्रपति की शक्तियों में कटौती करने के लिए भी राजी हैं। लेकिन उन्होंने अपना पद छोड़ने से इनकार कर दिया है। गोटाबाया राजपक्षे का कहना है।‘पद छोड़ना किसी समस्या का हल नहीं है।’ हालांकि वे इसी सप्ताह नए प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की नियुक्ति करेंगे। इसके साथ ही देश में संवैधानिक सुधार भी लागू करवाए जाएंगे।
देशव्यापी विरोध-प्रदर्शन के बाद महिंदा राजपक्षे ने 9 मई को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे के बाद श्रीलंका में हिंसा भड़क उठी थी।कोलंबो समेत कई शहरों में राजपक्षे परिवार के समर्थकों और सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़पें हुईं। जिसमें 5 लोगों की मौत और 150 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। प्रदर्शनकारियों ने रुलिंग पार्टी के कई सांसदों का भी घेराव किया था। जिससे परेशान होकर एक सांसद ने खुदकुशी कर ली। प्रदर्शनकारियों ने कई मंत्रियों के घरों में आग लगा दी। यहां तक कि राजपक्षे परिवार के पैतृक आवास को भी नहीं बख्शा।उसको भी आग के हवाले कर दिया।
श्रीलंका में इस हफ्ते हुए हिंसक प्रदर्शनों पर गोटाबाया राजपक्षे ने कहा, <<BYTE>> ‘9 मई को जो हुआ वो दुर्भाग्यपूर्ण था। हत्या, हमले, डराने-धमकाने, संपत्ति को नष्ट करने और उसके बाद के जघन्य कृत्यों को बिल्कुल भी उचित नहीं ठहराया जा सकता।’
अब बात करे श्रीलंका में हो रहे विरोध प्रदर्शन की वजह क्या है। तो बता दें इन प्रदर्शनों की जड़ है श्रीलंका की कंगाली। ‘स्वर्ण नगरी’ कही जाने वाली कुबेर की लंका आज पाई-पाई को मोहताज है।और उसकी वजह है मौजूदा राजपक्षे सरकार और उसकी नीतियां। राजपक्षे परिवार की गलत नीतियों के चलते श्रीलंका पर 5 हजार करोड़ डॉलर का कर्ज है। जिसे ना चुका पाने में उसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। चीन ने उसके हंबनटोटा और कोलंबो पोर्ट को हथिया लिया है। IMF से बेलआउट पैकेज नहीं मिला तो श्रीलंका ने बीते महीने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।
बता दें कि 1948 में आजादी मिलने के बाद श्रीलंका अब तक के सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है। ये संकट विदेशी मुद्रा भंडार खाली होने की वजह से पैदा हुआ है। श्रीलंका के पास खाद्य पदार्थों और ईंधन खरीदने तक के लिए पैसे नहीं हैं। डीजल-पेट्रोल और रसोई गैस के दाम आसमान छू रहे हैं। साथ ही खाने-पीने की चीजों की भारी किल्लत है। गेहूं, चावल, दूध, ब्रेड, सब्जी लोगों की पहुंच से दूर होती चली जा रही है। जिसको लेकर श्रीलंका की जनता सड़कों पर उतर आई। कई बार राष्ट्रपति आवास से लेकर संसद तक धरना दिया। लेकिन जब सरकार ने कोई हल नहीं निकाला तो जनता का आक्रोश फूट पड़ा और प्रदर्शन उग्र होता गया।हालांकि अभी भी विरोध-प्रदर्शनों का दौर थमा नहीं है। महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद अब उनकी गिरफ्तारी की मांग तेज हो गई है। बताया जा रहा है कि महिंदा राजपक्षे अपने परिवार के साथ त्रिंकोमाली स्थित नौसेना अड्डे पर कड़ी सुरक्षा घेरे में हैं। हिंसा के बाद कोलंबो में भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है। राजधानी में सेना को अलर्ट मोड पर रखा गया है।साथ ही हिंसक प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का भी आदेश दिया गया है।