कहते हैं ना मुश्किल के वक्त में अपने ही साथ देते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ पड़ोसी देश श्रीलंका के साथ। चाइना के कर्ज के जाल में फंसा श्रीलंका कराह उठा तो उसने अपने पुराने दोस्त भारत से मदद मांगी। भारत ने भी पुराने सभी गिले-शिकवे भूलकर चीन की तरफ मदद का हाथ आगे बढ़ा दिया और भेज दिया लाखों टन गेहूं, दवाएं और जरूरी सामान। भारत के प्रधानमंत्री इस बात को भूल गए कि ये वही श्रीलंका है जो कुछ दिनों पहले चीन की गोद में बैठकर आंखे दिखा रहा था लेकिन भारत की हमेशा से ही नीति रही है कि वो मुश्किल वक्त में बड़े भाई का फर्ज निभाता आय़ा है और आगे बढ़कर मदद पहुंचाता रहा है। फिर चाहे वो श्रीलंका को हो, नेपाल हो या बांग्लादेश या म्यामांर। भारत हमेशा से ही अपने पड़ोसी देशों की हर संकट में मदद की है।
अब जब भारत का जहाजी बेड़ा राहत सामग्री लेकर श्रीलंका के बंदरगाह पहुंच चुके हैं। तो वहां के नए नवेले प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे भारत की तरफ से भेजी गई मदद से गदगद हैं। उन्होंने ट्वीट के जरिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार जताया है। साथ ही दोनों देशों के बीच संबंधों की मजबूती पर भी जोर दिया है।
यही नहीं भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंद मोरागोडा ने भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से मुलाकत के दौरान। अपने देश की तरफ से भारत को तहे दिल से शुक्रिया अदा किया। साथ ही श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने के लिए भारत से सहयोग की अपेक्षा की। वहीं भारत की तरफ से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हरसंभव मदद का आश्वासन दिया।
बता दें कि श्रीलंका का माली हालत बद से बदतर होती जा रही है। उसका विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खाली हो चुका है। यहां तक कि उसके पास विदेशों से पेट्रोलियम, रसोई गैस समेत कई जरूरी सामान खरीदने तक की हैसियत नहीं है। ऐसे में श्रीलंका खुद को आर्थिक रूप से दिवालिया तो घोषित ही कर चुका है। साथ ही विदेशों से भी मदद की गुहार लगाई है। हालांकि श्रीलंका की मदद के लिए अभी तक कोई भी देश प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आया है। दूसरी तरफ IMF ने भी श्रीलंका को लोन देने से मना कर चुका है। ऐसे में श्रीलंका को उसका पुराना यार और उसकी दोस्ती याद आई है। क्योंकि श्रीलंका अब चीन की चालबाजी समझ चुका है।वो समझ चुका है कि चीन कैसे दाना डालता है और बाद में जाल फेंककर एक ही बार में हलाल कर देता है। श्रीलंका अपना हंबनटोटा बंदरगाह चीन के पास 99 साल के लिए गिरवी तो है ही। इसके अलावा उसका कोलंबो पोर्ट भी हाथ से निकल चुका है। ऐसे में अब श्रीलंका के पास बंदरगाह से होने वाली कमाई ना के बराबर बची है। कोरोना की वजह से बीते कुछ सालों में पर्यटन व्यवसाय भी ठप पड़ गया है। जिसे फिर से गुलजार होने में अभी कुछ वक्त और लगेगा। ऐसे में खाद्यान्न संकट से गुजर रहे श्रीलंका के सामने और कोई विकल्प नहीं बचा तो उसे पुरानी यारी याद आई। और मदद के लिए भारत से गुहार लगा बैठा।भारत भी बिना देरी किए श्रीलंका की खाद्यान्न और पेट्रोलियम जरुरतों को बिना किसी एडवांस पेमेंट के पूरी कर रहा है। अब आप सोच रहे होंगे कि इससे भारत को क्या फायदा हो रहा है। तो इस पर चर्चा किसी और वीडियो में करेंगे। लेकिन एक पुरानी कहावत है। ‘दोस्ती यारी में नफा-नुकसान नहीं देखा जाता, बस यार की मदद की जाती है।