तियानमेन स्कवॉयर में हुई हिंसा को दर्शाती ‘पिलर ऑफ शेम’ को पिछले साल हांगकांग यूनिवर्सिटी से रातों-रात हटा दिया गया था। लेकिन इसकी हुबहू नकल यानि प्रतिकृति ताइवान के ताइपे शहर में भी बनाई गई थी जिसे पुलिस ने गिरा दिया। ताइवान पुलिस ने शक के आधार पर 19 साल के एक युवक को अरेस्ट भी किया है। बता दें ओरिजनल ‘पिलर ऑफ शेम’ को एक डेनिश आर्टिस्ट जेन्स गाल्सियॉट ने बनाया था। जिसे करीब 2 दशक बाद चीन की कम्यूनिस्ट सरकार ने यूनिवर्सिटी कैंपस से हटा दिया। दरअसल चीन की सत्ताधारी कम्यूनिस्ट पार्टी तियानमेन स्कवॉयर की उस काले इतिहास को मिटाने की हर संभव कोशिश कर चुकी है। घटना से जुड़ी सारी जानकारी इंटरनेट से मिटा दी गई है, यहां तक कि किसी अखबार, किताब या साहित्य में भी इस घटना का जिक्र नहीं है।
अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तियानमेन स्कवॉयर की वो घटना क्या थी। क्यों चीन की कम्यूनिस्ट सरकार उस काले दिन को इतिहास के पन्नों से मिटा देना चाहती है?
तो आपको बता दें तियानमेन स्कवॉयर नरसंहार को 33 बरस बीत चुके हैं। चीन की कम्यूनिस्ट सरकार में एक उदारवादी नेता थे हू याओबैंग। जो सरकारी तंत्र में मौजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। लोग भी चीन की मौजूदा सरकार से खफा थे। खासकर युवा वर्ग। तो जाहिर है हू याओबैंग युवाओं में काफी लोकप्रिय थे। मई के आखिरी दिनों में याओबैंग की संदिग्ध मौत हो जाती है।जिसे हत्या मानकर लोग आंदोलन शुरू कर देते हैं। हजारों लोग सड़कों पर उतर पड़ते हैं। तियानमेन चौक पर हजारों छात्र इकट्ठा होकर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर देते हैं। धीरे-धीरे आंदोलन बड़ा हो जाता है। जो कम्यूनिस्ट सरकार की आंखों में खटकने लगता है। प्रदर्शनकारी सरकारी तंत्र में मौजूद भ्रष्टाचार को खत्म करने की मांग कर रहे थे। इसी कड़ी में 30 मई को छात्रों ने तियानमेन चौक पर लोकतंत्र की मूर्ति स्थापित कर दी। इस मूर्ति की चर्चा चिंगारी की तरह पूरे चीन में फैल गई। इसके बाद पूरे देश में विरोध होने लगा। 2 जून की देर रात कम्युनिस्ट पार्टी ने मार्शल लॉ लागू कर दिया। 3 जून की रात से ही चौक से हजारों छात्रों हटाने का अभियान शुरू हो गया। 4 जून 1989 को देंग जियांगपिंग और दूसरे नेताओं ने सेना को आदेश दिया कि चौक को पूरी तरह खाली करा लिया जाए। प्रदर्शनकारियों ने चौक छोड़ने को मना कर दिया। जब प्रदर्शकारी चौक से नहीं हटे, तब सेना ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए चीनी सेना मिलिट्री टैंक लेकर पहु्ंची। हजारों बेगुनाहों को टैंक के नीचे रौंद दिया गया। बताया जाता है कि उस घटना में करीब 3 हजार लोग मारे गए थे। हालांकि चीन की सरकार 200 से 300 लोगों के मारे जाने की बात कहती है। जबकि यूरोपीय मीडिया एजेंसियों के मुताबिक उस घटना में तकरीबन 10 हजार लोगों की मौत हुई थी।चीन के इस दुर्दांत कृत्य की दुनियाभर में आलोचना हुई थी। लेकिन चीन की सरकार ने अपनी करनी पर आज तक पीड़ितों से माफी तक नहीं मांगी। उल्टे चीन की सरकार अपने उस एक्शन को सही ठहराती है।
लेकिन अब 3 दशक बीत जाने के बाद भी चीन की सरकार उस घटना को नहीं भूली है। चीन की सरकार तियानमेन स्कवॉयर नरसंहार से जुड़े हर सबूत मिटा देना चाहती है। टोरंटो यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट बताती है कि अब तक चीन इस घटना से जुड़े 3200 से ज्यादा सबूतों को मिटा चुका है। कई सबूत सेंसर कर दिए गए है, अगर कोई विदेशी शख्स या मीडियापर्सन तिनायमेन चौक पर जाना चाहता है तो उसे इजाजत नहीं है। इस घटना से जुड़ी एक तस्वीर है जिसका जिक्र किया जाना बेहद जरूरी है। दरअसल इस घटना के दौरान तियानमेन चौक की ओर बढ़ रहे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के टैंकों को रोकते हुए शख्स की तस्वीर 4 जून 1989 को एक फोटोग्राफर ने खींच ली थी। इस तस्वीर को गॉडेस ऑफ डेमोक्रेसी यानि ‘लोकतंत्र की देवी’ कहा जाता है। इस तस्वीर में दिख रहे शख्स को 'टैंक मैन' के नाम से भी जानते हैं।