जिस तरह से रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है उसकी हर तरफ आलोचना हो रही है. रूस पर युद्ध खत्म करने का दबाव डालने के लिए अमेरिका और यूरोपीय देश उसपर आर्थिक प्रतिबंध लगाना शुरू कर चुके हैं. यूक्रेन पर हमले के बाद रूस को ग्लोबल फायनेंशियल सिस्टम से पूरी तरह से अलग करने के लिए स्विफ्ट से बाहर करने की मांग की जा रही है ताकि रूस को आर्थिक चोट पहुंचाई जा सके. तो आज के know this वीडियो में हम आपको बताएंगे कि SWIFT क्या है? क्यों पश्चिमी देश रूस को इससे अलग करने की मांग कर रहे हैं? साथ ही आपको बताएंगे कि SWIFT से अलग होने से रूस को कितना नुकसान होगा ? बस आप वीडियो के आखिर तक रहिए हमारे साथ..
स्विफ्ट का पूरा नाम द सोसायटी फॉर वर्ल्ड वाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन है. ये दुनिया के बैंकों को जोड़ने वाला फाइनेंशियल मेसेजिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर है. इसे बेल्जियम से ऑपरेट किया जाता है. इसे स्विफ्ट से जुड़े बैंक चलाते हैं. इसके जरिये 200 देशों और 11 हजार फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस को वित्तीय लेन-देन से जुड़े निर्देश पहुंचाए जाते हैं. SWIFT की निगरानी G-10 देशों (बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, नीदरलैंड, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, स्विट्जरलैंड और स्वीडन) के सेंट्रल बैंकों के साथ ही यूरोपीय सेंट्रल बैंक करता है.
बता दें कि SWIFT लेनदेन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी कि FATF के दायरे में आता है, 1989 में बना FATF मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ लड़ाई के लिए बना है..
जैसा कि हमने आपको बताया किसी भी इकॉनमी के लिए सीमा-पार अंतरराष्ट्रीय लेन-देन बहुत जरूरी होता है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार हो या विदेशी निवेश, प्रवासियों की ओर से देश में भेजे जाने वाली रकम हो या इकॉनमी या रिजर्व बैंक जैसे केंद्रीय बैंकों का मैनेजमेंट, ये सारे काम स्विफ्ट के जरिये होते हैं. इसलिए अगर किसी देश को इससे बाहर किया जाता है तो एक तरह से उसकी समूची अर्थव्यवस्था पर असर होता है. इसलिए रूस सहित दुनिया के देशों के लिए स्विफ्ट इतना महत्वपूर्ण है.
वहीं अगर रूस को SWIFT से हटाया गया तो इसका असर उसकी अर्थव्यवस्था पर हर हाल में पड़ेगा. हालांकि, ऐसा तभी होगा जब उसे लंबे समय के लिए उसे सिस्टम से हटाया जाएगा. ऐसा होने पर रूसी कंपनियों और व्यक्तियों के लिए आयात का भुगतान करना और निर्यात के लिए पैसा पाना, विदेश से उधार लेना या बाहर निवेश करना मुश्किल हो जाएगा. SWIFT से हटाए जाने से रूस की ग्लोबल ट्रेड में हिस्सेदारी पर असर पड़ेगा और उसे विदेश से पैसा पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
इसके अलावा रूस पर इस बैन का सबसे ज्यादा असर उसके तेल और गैस से मिलने वाले प्रॉफिट पर पड़ेगा, जिसका रूस की कमाई में 40% तक योगदान है. ईरान को जब 2012 में SWIFT से हटाया गया था, तो उसकी तेल से कमाई आधी रह गई थी और विदेशी व्यापार की कमाई का 30% हिस्सा गंवा दिया था.
बता दें कि अगर रूस के SWIFT के इस्तेमाल पर बैन लगता है तो रूस पेमेंट के दूसरे तरीकों का यूज कर सकता है.. यानी कि हो सकता है कि रूस ने बैन से निपटने की तैयारी कर ली हो. खबर है कि रूस ने SWIFT के संभावित बैन से निपटने की तैयारी 2014 में ही शुरू कर दी थी. 2014 में क्रीमिया पर हमले के बाद रूस के ऊपर पश्चिमी देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे. एक संभावना ये भी है कि रूस उन देशों के जरिए पेमेंट कर सकता है, जिनसे उसकी दुश्मनी नहीं है और जिन्होंने प्रतिबंध नहीं लगाए हैं.रूस भुगतान के लिए क्रिप्टोकरेंसी जैसे विकल्प का भी सहारा ले सकता है.