रूस यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग पर भारत के पक्ष को लेकर कई तरह के सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर भारत एक छोटे से देश पर रूसी आक्रमण को लेकर चुप क्यों है. बता दें हाल ही में भारत ने को यूक्रेन के खिलाफ रूसी हमले की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव पर मतदान में भाग नहीं लिया. माना जा रहा है कि भारत की इस चुप्पी का जवाब इतिहास से पन्नों से जुड़ा हुआ है. आज नो दिस के इस वीडियो में हम जानेंगे कि कब कब रूस ने मुश्किल में फंसे भारत का साथ दिया था. आप वीडियो के आखिर तक बने रहिए हमारे साथ.
आजादी के बाद के पहले तीन दशकों में जब भारत आर्थिक और सैन्य रूप से मजबूत नहीं था तो सोवियत संघ, जो मौजूदा रूस का पूर्ववर्ती देश था, हमेशा भारत के साथ खड़ा रहा.
1971 की जंग शुरू होने से तीन महीने पहले भारत ने बांग्लादेश की मुक्ति के लिए युद्ध में एक शानदार जीत की नींव रखने के लिए सोवियत संघ के साथ 'शांति और मित्रता' संधि पर हस्ताक्षर किए. उस वक्त अमेरिका और पाकिस्तान के संबंध काफी मजबूत थे. अमेरिका ने पाकिस्तान को भारत के खिलाफ जंग के लिए कई अत्याधुनिक हथियार दिए थे.
मुश्किल से घिरे भारत ने उस वक्त रूस से मदद मांगी. अमेरिकी नौसेना को बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ता देख रूस ने भारत की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया. उसने अपनी परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी और विध्वंसक जहाजों को प्रशांत महासागर से हिंद महासागर की ओर भेजा. नतीजा ये हुआ कि अमेरिका का बेड़ा पाकिस्तान की मदद करने नहीं पहुंच सका... पाकिस्तानी सेना ने भारत के सामने घुटने टेक दिए और आत्मसमर्पण कर दिया.
इसके अलावा भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की निंदा प्रस्तावों से सोवियत संघ हमें हमेशा बचाता रहा. रूस ने 1957 में कश्मीर पर, 1962 में गोवा पर और 1971 में बांग्लादेश युद्ध पर अपने वीटो का इस्तेमाल किया जब पश्चिमी ब्लॉक भारत की निंदा करना चाहता था. जैसे 1961 में जब भारत ने गोवा को पुर्तगाली कब्जे से मुक्त करने की कोशिश की तो पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर को लागू करने की कोशिश की और प्रस्ताव लाया कि भारत को गोवा से अपनी सेना वापस बुला लेनी चाहिए. इस प्रस्ताव को संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन था. लेकिन यूएसएसआर भारत के बचाव में आया और वीटो पावर का इस्तेमाल कर प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
कई मौकों पर भारत की मदद करने के लिए वीटो की जरूरत नहीं होती थी. ऐसे समय में भारत के सहयोगी जैसे सोवियत संघ और पोलैंड ने भारत को निशाने पर रखने वाले या उसके हितों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावों में मतदान करने से परहेज किया है. इन्हीं वजहों के चलते रूस को भारत का सदाबहार दोस्त माना जाता है.